Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Nemichandra Jyotishacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 525
________________ पंचविंशतितमोऽध्यायः 427 आश्लेषा में रवि के रहने से अलसी, तिल, तैल, गुड़, शेमर, नील और अफीम महँगे होते हैं। मघा में रवि के रहने से ज्वार, एरण्ड बीज, दाख, मिरच, तैल और अफीम महंगे होते हैं। पूर्वा फाल्गुनी में रहने से सोना, चाँदी, लोहा, घृत, तेल, सरसों, एरण्ड, सुपाड़ी, नील, बाँस, अफीम, जूट आदि तेज होते हैं । उत्तरा फाल्गुनी में रवि के रहने से ज्वार, जौ, गुड़, चीनी, जूट, कपास, हल्दी, हरड़, हींग, क्षार और कत्था आदि तेज होते हैं । हस्त में रवि के रहने से कपड़ा, गेहूं, सरसों आदि तेज होते हैं । चित्रा में रहने से गेहूं, चना, कपास, अरहर, सूत, केशर, लाल चपड़ा तेज होते हैं । स्वाति में रहने से धातु, गुड़, खाँड़, तेल, हिंगुर, कपूर, लाख, हल्दी, रूई, जूट आदि तेज होते हैं । अनुराधा और विशाखा में रहने से चाँदी, चावल, सूत, अफीम आदि महँगे होते हैं । ज्येष्ठा और मूल में रहने से चावल, सरसों, वस्त्र, अफीम आदि पदार्थ तेज होते हैं । पूर्वाषाढ़ा में रहने से तिल, तैल, गुड़, गुग्गुल, हल्दी, कपूर, ऊनी वस्त्र, जूट, चाँदी आदि पदार्थ तेज होते हैं। उत्तराषाढ़ा और श्रवण में रवि के होने से उड़द, मूंग, जूट, सूत, गुड़, कपास, चावल, चाँदी, बाँस, सरसों आदि पदार्थ तेज होते हैं । धनिष्ठा में रहने से मूंग, मसूर और नील तेज होते हैं। शतभिषा में रवि के रहने से सरसों, चना, जूट, कपड़ा, तैल, नील, हींग, जायफल, दाख, छहारा, सोंठ आदि तेज होते हैं । पूर्वा भाद्रपद में सूर्य के रहने से सोना. चांदी, गेहूं, चना, उड़द, घी, रुई, रेशम, गुग्गुल, पीपरा मूल आदि पदार्थ तेज होते हैं। उत्तराभाद्रपद में रवि के होने से सभी स, धान्य और तेल एवं रेवती में रहने से मोती, रत्न, फल-फूल, नमक, सुगन्धित पदार्थ, अरहर, मूंग, उड़द, चावल, लहसुन, लाख, रूई, सज्जी आदि पदार्थ तेज होते हैं। उक्त चक्र द्वारा तेजी-मन्दी निकालने की विधि शाक. खगाब्धि भूपोन. 1649 शालिवाहनभूपतेः । अनेन युक्तो द्रव्यांकश्चैत्रादि प्रतिमासके ।। रुद्रनेत्र : हृते शेषे फलं चन्द्रेण मध्यमम् । नेत्रण रसहानिश्च शून्येनार्घ स्मृतं बुधैः । अर्थात् शक वर्ष की संख्या में से 1649 घटा कर, शेष जिस मास में जिस पदार्थ का भाव जानना हो उसके ध्र वांक जोड़कर योगफल में 3 का भाग देने से एक शेष समता, दो शेष मन्दा और शून्य शेष में तेजी कहना चाहिए । विक्रम संवत् में से 135 घटाने पर शक संवत् हो जाता है। उदाहरण-विक्रम संवत् 2013 के ज्येष्ठ मास में चावल की तेजी-मन्दी जाननी है । अतः सर्वप्रथम विक्रम संवत्-बनाया-2013-135=1878 शक संवत् । सूत्र-नियम के अनुसार 1818-1649=229 और ज्येष्ठ मास में चावल का ध्रु वांक 1 है, इसे जोड़ा

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