Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 226
________________ गा.-६७ बन्धशतकप्रकरणम् भा० अट्ठण्ह तिचत्ताए कमेण बंधो अणुक्कसऽजहन्नो । साईयाई चउहा अट्ठतिचत्ता य पुण एवं ॥५११।। तेयाकम्मागुरुलहुनिम्माणपसत्थवन्नचउ अट्ठ । नाणंतरायदसगं देसणनवमोहपयडीओ ॥५१२॥ वेयतियहासचउसम्ममीसरहिया उ असुभवन्नचऊ । उवघाएणं सहिया तेयाला एस नायव्वा ॥५१३॥ अट्ठण्हं उक्कोसं खवगाऽपुव्वो उ तीसपयडीणं । सुरगइपाओगाणं बंधते पकरई बंधं ॥५१४॥ एगुवरि उवसमसेढिए वि लब्भइ अणुक्कसणुभागो । तो उवसंते न भवइ होइ तप्पडियजंतूणं ॥५१५॥ तो साई तमपत्ताण सो अणाई धुवाधुवा दोवि । पुव्वंपि व विन्नेया सेसतिगं जिट्ठजहन्नियरं ॥५१६॥ तत्थुक्कोसो सायाइखवगे वन्निओ तओ एगं । समयं होउं न भवइ तो अधुवो जहन्नमणुभागं ॥५१७॥ एयासिं सुभपयडित्तणाउ उक्कोससंकिलेसम्मि । वटतो बंधइ मिच्छपज्जपंचिंदिओ सन्नी ॥५१८॥ पुण एगदुसमया वा कमेण जहन्नियरकालओवस्सं । बंधइ अजहन्नबंधं पुण उक्कोसा जहण्णपए ॥५१९॥ बहुहा परिवत्तमाणा तहि साई अधुवया सुगमेव । तेयालाए साईपभिईयां पुण भयंते च ॥५२०॥ विग्घावरणे दंसणचउक्च इय चउदसण्हपयडीणं । असुहत्ता खवगो सुहुमचरिमसमए जहन्नरसं ॥५२१॥ बंधइ तत्तो अन्नो उवसमसेढियए वि होइ अजहन्नो । तो उवसंते न भवइ तप्पडियस्स उ पुणो साइं ॥५२२॥ २१०

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