Book Title: Ayogvyavacched Dwatrinshika
Author(s): Vijaypradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 24
________________ तत्त्वनिर्णय प्रासादे १९ आगमोंकों जगत् में प्रवर्त्तावने वाले हैं, और जे आगम हिंसादि, आदि शब्दसें मृषा, अदत्तादान, मैथुनादि पाप कर्म करनेके उपदेशक हैं, वे आगम प्रमाण नही है | ॥ १० ॥ अथ भगवंतप्रणीत आगमके प्रमाण होने हेतु कहते हैं। हितोपदेशात्सकलज्ञक्लृप्ते मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहाच्च । पूर्वापरार्थेप्यविरोधसिद्धे स्त्वदा गमा एव सतां प्रमाणम् ॥ ११ ॥ व्याख्या - हे भगवन् जिनेंद्र! (त्वदागमाएव) तेरे कथन करे हुए द्वादशांगरूप आगमही ( सतां ) सत्पुरुषांकों (प्रमाणम्) प्रमाण है, किस हेतुसें (हितोपदेशात्) एकांत हितकारी उपदेशके होनेसें और (सकलज्ञक्लृप्तेः) सर्वज्ञके कथन करे रचे हुए होनेसें, (च) और (मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहात्) मोक्षकी इच्छावाले सत्साधुयोंके ग्रहण करनेसें, अर्थात् आचार्य उपाध्याय साधु जिनके प्रवर्तक होनेसें, (अपि) तथा (पूर्वापरार्थे) पूर्वापर कथन करे अर्थो में ( अविरोधसिद्धेः) अविरोधकी सिद्धिसें ॥ ११ ॥ अथ भगवत् के सत्योपदेशकों परवादी किसी प्रकारसेंभी निराकरण नही कर सक्ते हैं यह कथन करते हैं । क्षिप्येत वान्यैः सदृशी क्रियेते वा तवाङ्गिपीठे लुठनं सुरेशितुः । इदं यथावस्थितवस्तुदेशनं परैः कथंकारमपाकरिष्यते ॥ १२ ॥ व्याख्या - हे जिनेंद्र ! (तव) तेरे (अङ्घ्रिपीठे) चरण कमलोंमें,

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