Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 299
________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 - cacakacance श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2000000 (62-63) (नियुक्ति-अर्थ-) बाह्य (अवधि) का लाभ होने की स्थिति में, द्रव्य, क्षेत्र, काल व . & भाव को विषय करने वाले अवधिज्ञान का उत्पाद व प्रतिपात (और तदुभयरूप भी) एक, समय में भजनीय है (विकल्प से इनका सद्भाव होता है) 162 // आभ्यन्तर (अवधि) की प्राप्ति होने पर तो उत्पाद व प्रतिपात -दोनों ही एक समय : में नहीं होते, एक समय में या तो उत्पाद होता है या फिर प्रतिपात ||63 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) - (प्रथमगाथाव्याख्या-) तत्र द्रष्टुर्बहिर्योऽवधिस्तस्यैव एकस्यां दिशि अनेकासु वा , विच्छिन्नः स बाह्यः, तस्य लाभो बाह्यलाभः, अवधिः प्रक्रमात् गम्यते / अस्मिन् बाह्यलाभे, सति-बाह्यावधिप्राप्तौ सत्यां भाज्यः' विकल्पनीयः कोऽसौ?-उत्पादः, प्रतिपातः, तदुभयगुणश्च / एकसमयेनेति सम्बन्धः।किंविषय इति?, आह-'द्रव्य' इति द्रव्यविषयः।एवं क्षेत्रकालभावविषय व इति।अपिचशब्दाः पूरणसमुच्चयार्थाः। अयं भावार्थः-एकस्मिन् समये द्रव्यादौ विषये बाह्यावधेः कदाचिद्रुत्पादो भवति कदाचिद् , & व्ययः, कदाचिदुभयम्, दावानलदृष्टान्तेन, यथा हिदावानलः खल्वेककाल एवैकतो दीप्यतेऽन्यतच ध्वंसत इति, तथा अवधिरपि एकदेशे जायते, अन्यत्र प्रच्यवत इति गाथार्थः // 12 // (वृत्ति-हिन्दी-) प्रथम (62वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- प्रकरण-वश बाह्य से तात्पर्य है- बाह्य अवधि / बाह्य अवधि वह होता है जो द्रष्टा के बाहर रहता है, अर्थात् या तो , * वह (सब दिशाओं में न जानकर) किसी एक दिशा में जानता है, या अनेक दिशाओं में से & (किसी व्यवधान या बीच-बीच में रुकावट के कारण) विच्छिन्न रहता है। उस (बाह्य अवधि) . & के लाभ या (उसकी) प्राप्ति होने पर। भाज्य, भजनीय होता है अर्थात् विकल्प से कथनीय , होता है। कौन? एक समय में (अवधिज्ञान का) उत्पाद, प्रतिपात व उभयगुणात्मक अवस्थान। , वह किस (ज्ञेय) विषय से सम्बद्ध रहता है? उत्तर है- द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव को विषय, करने वाला होता है। अपि और च -ये शब्द पूरणार्थक (पादपूर्ति हेतु) तथा समुच्चय अर्थ के, वाचक हैं। भाव यह है- एक समय में द्रव्य (क्षेत्र, काल, भाव) आदि विषयों में बाह्यावधि का " कभी उत्पाद होता है तो कभी व्यय / यहां दावानल के दृष्टान्त द्वारा इसे इस प्रकार समझा जा - 258 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ne

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