Book Title: Atmapradip Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मप्रदीपः स्वोपइटीकासहितः हृदि ध्यात्वा गिरामीशं गुरुं तत्त्वार्थबोधकम् ॥ आत्मप्रदीपनामानं ग्रन्थं विस्तारयाम्यहम् ॥१॥ टीका मङ्गलाचरणम्. श्लोकः पार्श्वनाथ तवालम्बात् का वराकी भवव्यथा ॥ मातुह्यस्थिताम्य गका पन हेलना ॥ १ ॥ ग्रन्थस्य निष्पत्यूहव्यूहम्म ८ यर्थ स्वेष्टंदवतास्तवन पुर. स्तरं प्रतिनानीने ग्रन्थकारः । हृदात्यादिना गिरां भगवके. बलिवचनानामीशं जिनवरं हृदि च्यात्वा मनागपि वाह्यवृत्या ध्यानं माभूदिति हृदीत्याह । नेन भगवनिष्ठरत्नत्रादिगुणे रात्मानं तन्मयं कृत्वा च तादात्म्यैकतानतया भगवत्यादगतिशयोऽभिधित्सितः । माता कमिव यो गुरुरमृतवर्षिया दृष्टयाऽभिषिञ्चन् तधार्थ शिक्षयांचक्रे तमपि ग्रन्थादौ स्मरनि गुरुं तत्त्वाथबोधकमिति । तत्त्वानां जीवादिम क्षान्ताना सम्पकप्रकाशकस्तं ननु जिनवरे ध्याते गुरु For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 318