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स्तवनावली। गयो । चनसठ सुरपति सोग करतहे, नरते तरणि डिपायो रे ॥ मे ॥ ४ ॥ गौतम देवशरम प्रतिबोधी, सुन मनमें गनरायो । वर्धमान मुजे बोम जगतमें, एको ही मोद सिधायो रे ॥ मे ॥५॥ कोण आगल हुं प्रश्न करशु, उत्तर कोन सुनायो । कुमति उल्लुक बोलेंगे अधुना, अंधकार जग बायो रे ॥ मे॥६॥ तुं नहीं किसका को नहीं तेरा, तुं निज आतमरायो ॥ श्म चिंतत ही केवल पायो, जय जय मंगल गायो रे । मे ॥ ७॥
स्तवन अग्यारमुं।
॥राग सोरठ ॥ वीर जिने दीनी माने एक जरी, एक जंग पंचविश नागन,सुंघत तुरत मरी॥आंचली॥कुमति कुटल अनादिकी वैरन, देखत तुंरत मरी, चारो ही दासी पूत जयंकर, हूए जसम जरी ॥ वीर ॥१॥ बावीस कुमति पूत इग्लेि, नाठे मदसें गरी। दोउ सुन्नट जर मूरसें नासे, बुट्यो मदन मरी ॥ वीर ॥२ ॥ महानंद रस चाखत पायो, तन मन दाह ठरी। अजरामर पद संग सुहायो, नव लव ताप हरी ॥ वीर ॥३॥ सिव .