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३८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ उसके आधार पर ही इस सार्वभौम कार्यक्रम का निर्देशन और संचालन कर सकते हैं।
विकास की गति में दो बड़े विघ्न हैं१. अहं २. एकांगी दृष्टिकोण।
हमें समर्पण का मंत्र मिला है और अनेकांत का दर्शन मिला है। समर्पण सत्य के प्रति, सिद्धान्त के प्रति, अनुशासन के प्रति, संघ और संघपति के प्रति। अहं के विघ्न का विनाशक है समर्पण। अनेकान्त पूर्वाग्रह के निवारण का अमोघ उपाय है।
हमारे विकास की दिशा है आध्यात्मिक उन्नयन। विकास के साधन हैं मस्तिष्कीय प्रशिक्षण और हृदय परिबर्तन। विकास की सीमा है साधन-शुद्धि का विचार।
तेरापंथ धर्मसंघ के पास मर्यादा महोत्सव का दीप और विकास महोत्सव का चक्षु विद्यमान है। हम इन दोनों का उपयोग करें, सत्य को देखें और उसके सहारे आगे बढ़ें।
मेरी प्रत्येक सृजनात्मक प्रवृत्ति, रचनात्मक दृष्टिकोण और कल्पना पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा का इतिहास है। विकास महोत्सव उन्हीं की अक्षत प्रेरणा का प्रसाद है। यह हमारे धर्मसंघ की प्रगति के लिए ज्योति-स्तंभ बनेगा।
* विकास महोत्सव पर दिया गया वक्तव्य ।
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