Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 108
________________ Acharya Sha Kaassagasan Gyanmand एक समय उस हाली ने आकाश मार्ग से उस मन्दिर में उतरते हुए एक चारण मुनि को देखा, वह मुनि श्री ऋषभदेव स्वामी के दर्शन और स्तुति करते थे। हाली को मुनि के दर्शन से हर्ष उत्पन्न हुआ और वह हल छोड़कर मन्दिर में पाया, वहां एक तरफ बैठे हुए साधु को बड़े हर्ष और उत्साह से पन्दना की और बिनय के साथ हाथ जोड़ कर बोला हे महाराज ! मैंने यह मनुष्य जन्म बड़ी कठिनता से पाया है, परन्तु मैं बड़ा दरिती हूँ-रात दिन बड़े दुःख से पीड़ित रहता हूँ। इस कारण मेरे धर्म किया का उदय नहीं आया। ऐसे दीन बचन हाली के सुनकर मुनिराजयोले हे भद्र ! तुमने पूर्व भव में धर्म का आदर नहीं किया । और न गुरु भक्ति की, और न साधु को सुपात्र दान दिया। इससे इस जन्म में भोग रहित हुआ और दीन नहीन होकर दारिद्रय से.पीड़ित रहता है।परन्तु कोई:शुभ परिणाम के कारण यह मनुष्य भव पालिया है। جلاله للحلاحليك ऐसे वचन मुनिराजके सुनकर वह हाल पृथ्वीमें मस्तक लगाकर सच अंग झुकाकर बोला । हे भगवन् ! आज से जो मुझे आहार मिलेगा उसमें से श्री जिनराज के अर्पण कर सुपात्र साधु को पात्र में देकर पीछे भोजन करूंगा। यह मेरा दृढ़ अभिग्रह है । मुनिराज ने ऐसे निश्चल वचन सुनकर कहा हे भद्र ! यह बात तुम For Private And Personal use only

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