Book Title: Ashtapahud
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ पृष्ठ विषय शील और ज्ञान परस्पर विरोध रहित हैं, शील के बिना ज्ञान भी नहीं ज्ञान होने पर भी ज्ञान भावना विषय विरक्ति उत्तरोत्तर कठिन है जबतक विषयों में प्रवृत्ति है तबतक ज्ञान नहीं जानता तथा कर्मों का नाश भी नहीं कैसा आचरण निरर्थक है महाफल देनेवाला कैसा आचरण होता है कैसे हुए संसार में भ्रमण करते हैं ज्ञानप्राप्ति पूर्वक कैसे आचरण संसार का नाश करते हैं ज्ञान द्वारा शुद्धि में सुवर्ण का दृष्टान्त विषयों में आसक्ति किस दोष से है निर्वाण कैसे होता है नियम से मोक्षप्राप्ति किसके है किनका ज्ञान निरर्थक है कैसे पुरुष आराधना रहित होते हैं किनका मनुष्यजन्म निरर्थक है। शास्त्रों का ज्ञान होने पर भी शील ही उत्तम है शील मंडित देवों के भी प्रिय होते हैं मनुष्यत्व किनका सुजीवित है शील का परिवार तपादिक सब शील ही है विषयरूपी विष ही प्रबल विष है पृष्ठ विषयासक्त हुआ किस फल को प्राप्त होता है ३३४ शीलवान तुष के समान विषयों का त्याग ३२१ करता है ३३४ विषय ३२२ अंग के सुन्दर अवयवों से भी शील ही सुन्दर है ३३५ मूढ तथा विषयी संसार में ही भ्रमण करते हैं ३३६ कर्मबंध कर्मनाशक गुण सब गुणों की शोभा ३२३ शील से है ३३७ ३२४ मोक्ष का शोध करनेवाले ही शोध्य हैं ३२४ शील के बिना ज्ञान कार्यकारी नहीं, उसका सोदाहरण वर्णन ३३९ ३२५ नारकी जीवों को भी शील अर्हद्विभूति से ३२५ भूषित करता है, उसमें वर्द्धमान जिनका दृष्टान्त ३३९ ३२६ मोक्ष में मुख्य कारण शील ३२७ अग्नि के समान पंचाचार कर्म का नाश करते हैं ३४० ३२७ कैसे हुए सिद्ध गति को प्राप्त करते हैं । ३४१ ३२८ शीलवान महात्मा का जन्मवृक्ष गुणों से ३२८ विस्तारित होता है ३४१ ३२९ किसके द्वारा कौन बोधि की प्राप्ति करता है ३३० कैसे हुए मोक्ष सुख को पाते हैं ३४२ ३३० आराधना कैसे गुण प्रगट करती है ३४३ ३३१ ज्ञान वही है जो सम्यक्त्व और शील सहित है। ३४४ ३३१ टीकाकारकृत शीलपाहुड का सार ३४५ ३३३ वचनिकाकार की प्रशस्ति ३४६ ३३४ ३४० mmmmmm ३४२ __mmmmmmm mmmm (३५)

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