Book Title: Arambh Siddhi Satik
Author(s): Udayprabhdevsuri, Jitendravijay
Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala
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-: प्रास्ताविक निवेदन :
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परमतारक अने कलिकालमां कल्पवेल समा श्री पतितपावन जिनागम, आजना भारतवर्षीय जैन समाज माटे एक अप्रतिम वारसो छे. श्रीजिनेश्वर प्रभुए अर्थथी कथित वाणीने मंगलनामधेय श्रीमद् गणधर भगवंतोए झीली, वेराएला नव्यपुष्पोने मालानी जेम, ते वाणीनी सूत्रोमा गुम्फन क्रिया करी. तेमज श्रुतनिधानस्थविर पुण्यपुरुषोए पण तदनुसार ग्रन्थगुंफन क्रियाद्वारा भाविमां थनार पुण्यात्माओना केवळ उपकारनेज माटे अनेक अमूल्य ग्रन्थश्रेणीओनी रचना करी. तेवा अनेकानेक ग्रन्थागीय विशेषोमां ज्योतिज्ञान-विषयक पण घणा ग्रन्थो मळो आवे छे. आगम-ग्रन्थोमां श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति - श्रीचन्द्र प्रज्ञप्ति - श्री ज्योतिषकरण्डक आदि ग्रन्थस्नो अग्रस्थान धरावे छे तदनुसार श्रीलमशुद्धि-श्रीदिनशुद्धि - श्रीनारचन्द्र विगेरे ग्रंथो, अगाधज्ञानावगाहक प्राचीन आचार्यपुङ्गवोए रच्या छे. तेज शैलीने अनुलक्षीने - श्रीनागेन्द्रगच्छ गगनविभूषण श्रीमत् शीलगुणसूरि प्रवरनी परम्परागत श्रीदेव चन्द्रसूरि - श्रीमहेन्द्रसूरि - श्री आनन्दसूरि-श्री- कलिकालगौतमना विरुदधर - श्रीहरिभद्रसूरि महाराजना पट्टोद्योतक - श्रीविजयसेनसूरिजी महाराज थया. तेओश्रोना शिष्यरत्न - श्रीधर्म्माभ्युदयमहाकाव्य उपदेशमाला कर्णिकावृत्ति आदि ग्रन्थोना रचयिता श्रीमान् उदयप्रभदेवसूरीश्वरे आ ग्रन्थनी सुरचना करी छे. तेओश्रीना शिष्य श्रीमान् मलिषेणसूरि महाराज थया, जेमणे द्वात्रिंशिकानी स्याद्वादमञ्जरी नामक न्यायपूर्ण एक सुंदर शैलीबाळी टीका बनावो छे. आ ग्रन्थना श्लोकोनी गहनतानो सुलभ बोध कराववा माटे घणीज आकर्षक बोध अने सरळ पद्धतिथी - षडावश्यक बालावबोधना कर्त्ता तथा व्याकरणवित्रयक - समग्रन्यायोना सङ्ग्रहिता तथा तेज न्यायसङ्ग्रहनी उपर बृहद्वृत्ति तथा बृहन्न्यासना कर्त्ता - वाचकाग्रणीय श्रीमद् हेमहंसगणिवरे आ ग्रन्थनी महान टीका बनावी स्वज्योतिर्ज्ञानार्णवने ठलयो छे. ग्रन्थकारने राजा वीरधवलना महामंत्रोश्वर सङ्घपति वस्तुपाले बहु ठाठथी आचार्यपदारोपण ते ओश्रीना प्रतिभावैभवने देखीने कराव्यं हतुं. ज्यारे टीका सं. १५१४ मां रचाइ हती. ज्योतिर्विद्याना अभिलाषुक विपश्चिन्दने ते अतीव उपयोगी होइने वर्त्तमानमां अलभ्य होवाथी आ ग्रन्थ सुज्ञ जनता समक्ष रजु कराय छे.
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