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आप्तवाणी-६
होते ही रहेंगे! खाना पड़ता है, संडास जाना पड़ता है, सबकुछ नहीं करना
पड़ता?
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प्रश्नकर्ता : हाँ, परंतु जो कर्म बाँधे होंगे, उनके फल फिर भोगने पड़ेंगे न?
दादाश्री : कर्म बाँधेगा तब तो फिर अगला जन्म हुए बगैर रहेगा नहीं! यानी कर्म बाँधेंगे तो अगले जन्म में जाना पड़ेगा ! लेकिन भगवान महावीर को अगले जन्म में नहीं जाना पड़ा था ! तो कोई रास्ता तो होगा न? कर्म करें, फिर भी कर्म नहीं बँधे, ऐसा?
प्रश्नकर्ता : होगा।
दादाश्री : आपको ऐसी इच्छा होती है कि कर्म नहीं बँधे? कर्म करने के बावजूद कर्म नहीं बँधे, ऐसा विज्ञान होता है । वह विज्ञान जानो तो मुक्त हो जाओगे!
न?
कर्म बाधक नहीं....
प्रश्नकर्ता : अपने कर्मों के फल के कारण यह जन्म मिलता है
दादाश्री : हाँ, पूरी ज़िंदगी कर्म के फल भोगने हैं ! और उनमें से नये कर्म उत्पन्न होते हैं, यदि राग-द्वेष करे तो ! यदि राग-द्वेष नहीं करे तो कुछ भी नहीं। कर्म हैं उसमें हर्ज नहीं है । कर्म तो, यह शरीर है इसलिए होंगे ही, परंतु राग-द्वेष करता है, उसमें हर्ज है। वीतराग क्या कहते हैं कि वीतराग बनो! इस जगत् में जो कुछ भी काम करते हो, उसमें काम की क़ीमत नहीं है। परंतु उसके पीछे राग- -द्वेष हों, तभी अगले जन्म का हिसाब बँधता है। यदि राग-द्वेष नहीं होते तो ज़िम्मेदार नहीं है ! पूरा देह, जन्म से मरण तक अनिवार्य है। उसमें से जो राग-द्वेष होते हैं, उतना ही हिसाब बँधता है। इसलिए वीतराग क्या कहते हैं कि वीतराग होकर निकल जाओ !
हमें तो कोई गालियाँ दे तो हम समझ जाते हैं कि ये अंबालाल पटेल को गाली दे रहे हैं, पुद्गल को गाली दे रहे हैं । आत्मा को तो वे जान