Book Title: Aptavani Shreni 02
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 446
________________ वीतराग मार्ग ४०९ हैं? जिन्हें इस जगत् में कुछ भी जानना बाकी नहीं बचा है, वे 'ज्ञानी'। जानना जिसे बाकी बचा हो, उसे हम 'ज्ञानी' कहते हैं और फिर हम जब उन्हें कुछ पूछे, तब वे उलझते रहते हैं। साहब क्या करते हैं? भीतर उलझते रहते हैं, फिर हमें शास्त्र के शब्द दिखाते हैं। अरे भाई, शास्त्र का तो तुझे क्या करना है! यहाँ पर किसलिए शब्द दिखा रहा है? तू अंदर से बोल न! अंदर से मरा हुआ है या जीवित है, वह बता न! यदि भीतर जीवित है तो बोल भीतर से! लेकिन इन शास्त्रों को क्यों बीच में लाता है? शास्त्र तो बोर्ड हैं, स्टेशन पर उतरने के बोर्ड हैं, बोर्ड की क्या हर घड़ी ज़रूरत पड़ती है? उसकी तो कभी ही ज़रूरत पड़ती है। उतना ही जानने के लिए कि, 'भाई, कौन सा स्टेशन आया?' तो वह कहेगा कि, 'भाई, वह बोर्ड दिखा रहा है, दादर।' ये शास्त्र तो दादर हैं। शास्त्र तो इटसेल्फ कहते हैं, 'गो टु ज्ञानी।' वे निशानी दिखाते हैं। यदि संसार में किसी उल्टे मार्ग की ज़रूरत हो, जगत् के विषयी सुखों की ज़रूरत हो, तुझे अहंकार भोगना हो, तो भगवान कहते हैं कि 'शास्त्र पढ़ और त्याग कर, तप कर, जप कर, तुझे जो अनुकूल आए, वैसा कोई भी तप-जप चुन ले। एक सब्जेक्ट चुन ले, उस सब्जेक्ट का फल तुझे मिलेगा। देवगति या फिर मनुष्यगति में ही अच्छा जन्म मिलेगा, यह मिलेगा, वह मिलेगा'। भगवान के सब्जेक्ट का आराधन किया, इसलिए कुछ फल तो मिलेगा न? भगवान ने मोक्ष के लिए निर्विषयी मार्ग बताया है! उसमें तप, त्याग, जप या जो बाहर के विषय हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है। वीतराग मतलब अत्यंत समझदार व्यक्ति। मोक्ष का सरल से सरल, आसान से आसान मार्ग, वीतराग देकर गए हैं, अन्य सभी लोगों ने मोक्ष का मार्ग उलझा-उलझाकर भूल-भुलैया के रूप में बताया है। वह भूलभुलैया कैसी? कि एक बार अंदर घुसा तो फिर निकल नहीं पाता, उसमें से निकला जा सके, ऐसा है नहीं। वीतराग के मार्ग में इतनी सी भी पोल नहीं रखी, क्योंकि वीतराग तो बहुत ही शुद्ध, जिन्हें कुछ भी नहीं चाहिए था, प्रपंच नहीं था, जिन में राग नहीं था, जिन्हें किसी भी प्रकार की इच्छा ही नहीं थी, वीतराग ऐसे थे!

Loading...

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455