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(२.३) अवस्था के उदय व अस्त
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स्त्री, पक्षी, इन सभी अवस्थाओं में भटका है। अवस्थाओं में से स्वस्थ होना है।
प्रश्नकर्ता : यदि एक पेड़ की डाली को काटकर दूसरी जगह पर रोपा जाए तो दूसरी जगह पर पेड़ बन जाता है। तो क्या एक आत्मा में से दो आत्मा बन जाते हैं ?
दादाश्री : एक आलू में तो करोड़ों-करोड़ों आत्माएँ हैं, एक ही आलू में। नागफनी में तो बहुत सारे जीव हैं। नागफनी का तो इतना सा टुकड़ा दबाया जाए न, तो भी वह उग निकलता है।
प्रश्नकर्ता : दादा! तो ये आत्माएँ, जिनका बिगिनिंग और एन्ड नहीं है, लेकिन कुछ संख्या तो होगी ही न! क्या उस संख्या में कमी या बढ़ोतरी होती ही नहीं है?
दादाश्री : नहीं! इस दुनिया में जो कोई भी चीज़ है, आत्मा या परमाणु हैं, वे संख्या में कम-ज्यादा नहीं होते।
प्रश्नकर्ता : बदलते रहते हैं, एक फॉर्म में से दूसरे फॉर्म में जाते रहते हैं?
दादाश्री : फॉर्म बदलते रहते हैं, (संख्या) कम-ज्यादा नहीं होते। और आत्मा जो है, उसमें कम-ज्यादा नहीं होता। परमाणु या किसी भी वस्तु में कमी या बढ़ोतरी नहीं होती। वह तो आपको ऐसा लगता है कि इसे जला दिया और ऐसा सब किया। वे सब अपने-अपने दूसरे फोर्मेशन बदलते हैं, अवस्थाएँ बदल जाती हैं।
प्रश्नकर्ता : अवस्था अर्थात् सिचुएशन।
दादाश्री : उसे फेज़िज़ कहा जाता है। वे अवस्थाएँ ही कम होती हैं, अन्य कुछ नहीं होता। वे जो परमाणु हैं, सभी वस्तुएँ वही की वही हैं। अन्य कोई परिवर्तन नहीं होता। अवस्था में रूपांतरण हो जाता है, फेज़िज बदलते रहते हैं।
जैसे कि यह पानी है न, उसे गरम करते हैं तो उसकी अवस्था