Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 39
________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासाहता। (३३) यस्मात्परमिति श्रुत्या तयापुरुषलक्ष. णम्॥विनिणीत विमूढेन कथं०॥३४॥ सं.टी.एवं युक्त्या देहात्मनोवलक्षण्यमुक्त्वा श्रुत्याप्याह यस्मादिति । “यस्मात्परं नापरमस्ति:किंचिद्यस्मात्राणीयो नज्यायोस्तिकश्चित् । वृक्षइव स्तब्धो दिवि तिष्ठत्येकस्तेनेदं पूर्णपुरुषेण सर्वम्” इति तया प्रसिद्धया तैत्तिरीयश्रुत्याकृत्वेति करणे तृतीया पुरुषस्यात्मनो लक्षणं विमूढेन विगतमूढभावेनाबिचतुरेण श्रुत्यर्थविवेचनकुशलेनेत्यर्थः इयं कतरितृतीया विनिर्णीतं विचार्य स्थापितं अन्यत्पूर्ववत् यद्वा श्रुत्येति कर्तृपदमस्मिन्पक्षे विमूढेनेति देहात्मवादिनं प्रति संबोधनं विमूढानों इन स्वामिन् मूर्खशिरोमणित्वादेव श्रति नाद्रियल इतिभावः ॥३४॥ ___ भा. टी. " यस्मापरं नापरमस्ति किञ्चित् यस्मानाणीयो नज्यायोऽस्तिकश्चित् । वृक्ष इव स्तब्धो दिवि तिष्ठत्येकस्तेनेदं पूर्ण पुरुषेण सर्वम्" इति श्रुतिः । अर्थात् जिससे पर अपर कुछ नहीं है जिससे और उत्कृष्ट नहीं है जिससे कोई सक्षम नहीं है जिससे कोई प्रधान नहीं है जो एक आत्मा वृक्षकी तरह स्तब्ध . होकर स्वर्गमें वर्तमान है वही.आत्मा इस सम्पूर्ण जगतको परिपूर्ण रखता है । इस श्रुतिसे परमात्माका लक्षण निर्णयकिया गया है फिर वह आत्मा किस प्रकार देहमय होसक्ताहै।।३४॥

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