Book Title: Anyokti Muktavali
Author(s): Hansvijay Gani, Kedarnath Pandit, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्यमाला। धिष्ण्या निरेकि मुनिजोदयगर्जितानि दोषाबलेन शशलाञ्छनलालितानि । प्रातः स एव समुदेष्यति चण्डभानु र्यस्योदयेन रजनिन विधुर्न यूयम् ॥ ४८ ॥ उद्यन्त्वमूनि सुबहूनि महामहांसि चन्द्रोऽप्यलं भुवनमण्डलमण्डनाय । सूर्यादृते न तदुदेति न चास्तमेति येनोदितेन दिनमस्तमिते च रात्रिः ॥ ४९ ॥ येनोन्मथ्य तमांसि मांसलघनस्पर्धीनि सर्व जग चक्षुष्मत्परमार्थतः कृतमिदं देवेन तिग्मत्विषा । तस्मिन्नस्तमिते विवस्वति कियान्क्रूरो जनो दुर्जनो ___ यहनाति दृशं शशाङ्कशकलालोके प्रदीपेऽथवा ॥ ५० ॥ पातः पूष्णो भवति महते नोपतापाय यस्मा कालेनास्तं क इह न गता यान्ति यास्यन्ति चान्ये । एतावत्तु व्यथयति यदालोकबाडैस्तमोमि स्तस्मिन्नेव प्रकृतिमहति व्योनि लब्धोऽवकाशः ॥ ५१ ॥ गते तस्मिन्मानौ त्रिभुवनसमुन्मेषविरह___ व्यथाश्चन्द्रो नेष्यत्यनुचितमतो नास्ति किमपि । इदं चेतस्तापं जनयतितरामत्र यदमी प्रदीपाः संजातास्तिमिरहतिबद्धो रशिखाः ॥ ५२ ॥ यत्पादाः शिरसा न केन विधृताः पृथ्वीभृतां मध्यत स्तसिन्भास्वति राहुणा कवलिते लोकत्रयीचक्षुषि । खद्योतैः स्फुरितं तमोभिरुदितं ताराभिरुज्जम्भितं धूकैरुत्थितमाः किमत्र करवै किं केन नो चेष्टितम् ॥ ५३ ॥ ध्वान्तं ध्वस्तं समस्तं विरहविगमनं चक्रवाकेषु चक्रे संकोचं मोचितं द्राग्वरकमलवनं धाम लुप्तं ग्रहाणाम् । For Private And Personal Use Only

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