Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ [श्रोमदनुयोगद्वारपूत्रम् ] इसके बाद निक्षेपद्वार नामक तृतीय अयोगद्वार का स्वरूर जानना चाहिये निक्षेप द्वार । से किं तं निक्खेवे ? तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओहनिष्फरणे नामनिप्फरणे सुत्तालावगणिप्फरणे ।। से कि त ओहनि फरणे ? चउबिहे पण्णत्ते. तं जहा-अज्झयणे अज्झोणे आए खवणा । ___ से कि त अझयणे ? चउठिरहे पण्णत्ते त जहाणामज्झयणे, ठवण कयणे दबझयणे भावज्झयणे, णामटवणाओ पुव्वं वरिणाओ। से कि त दव्यज्झयणे ? दुविहे पण्णत्ते, त जहाआगमओ अ णोआगमो अ। से कि त आगमओ दवझयणे ? जस्स णं अ. ज्झयणेत्ति पदं सिक्खत ठित जित मित परिजित जाव एवं जावइया अणव उत्ता आगमओ ताव इयाइं दव्वज्झ. यणाई, एवमेव वहारस्सवि संगहस्स णं एगो वा अगा। गो वा जाव, से तं आगमओ दव्वज्झयणे । - से कितणोआगमओ दवझयणे ? तिविहे पएणत्ते, तं जहा-जाणगसरीरदव्यज्झयणे भवियसरीरदव्वज्झयणे जाणगसरोरभवियसरोरवइरित्ते व्वझपणे । से कि तं जाणगसरीर दव्यज्झयणे ? अज्झयणपयस्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरं ववगयचुयचावियवत्तदेहं For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329