Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 264
________________ { 236 [अंतगडदसासूत्र जहा गोयमसामी जाव इच्छामो. छहों सहोदर मुनियों ने गौतम स्वामी की तरह जिनका वर्णन भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशक-5 में आया है, की तरह बेले के पारणे के दिन प्रथम प्रहर में शास्त्र-स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान तथा तीसरे प्रहर में शान्त भाव से मुखवस्त्रिका, वस्त्रों व पात्रों की प्रतिलेखना की। पात्रों को लेकर भगवान के चरणों में विधिवत् वन्दन-नमस्कार करके नगरी में भिक्षार्थ जाने की आज्ञा माँगी। आज्ञा मिल जाने पर अविक्षिप्त, अत्वरित, चंचलता रहित तथा ईर्या शोधन पूर्वक शान्त चित्त से भिक्षा हेतु भ्रमण करने लगे। जम्मणं जहा मेहकुमारे-धारिणी के समान देवकी महारानी के दोहद पूर्ति होने पर वह सुख पूर्वक अपने गर्भ का पालन कर लगी और नौ मास साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर उसने एक सुन्दर पुत्र रत्न को जन्म दिया जिसका जन्म अभिषेक, मेघकुमार के समान समझना चाहिए (जिसका वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र अध्ययन 1 पर उपलब्ध है) अर्थात् (1) सूचना देने वाली दासियों का दासत्व दूर किया और उनको विपुल आजीविका दी। (2) नगर को सुगन्धित कराया, कैदियों को बन्धन मुक्त किया और तोल-माप की वृद्धि की। दस दिन के लिये कर मुक्त किया और गरीबों और अनाथों को राजा ने मुक्त हाथ से दान दिया । दस दिन तक राज्य में आनन्द महोत्सव हुआ। बारहवें दिन राजा ने विपुल भोजन बनवा कर मित्र, ज्ञाति, राज्य-सेवक आदि के साथ खाते-खिलाते हुए आनन्द प्रमोद का उत्सव मनाया फिर उनका वस्त्राभूषणादि से सत्कार-सम्मान कर माता-पिता बोले कि हमारा यह बालक गज के तालु के समान कोमल व लाल है, इसलिये इसका नाम गजसुकुमाल होना चाहिये, ऐसा कह कर पुत्र का नाम गजसुकुमाल रखा। तं वरं सरइ, सरित्ता-सोमिल के उत्कृष्ट क्रोध का कारण शास्त्रकारों ने इन शब्दों में “अणेगभवसयसहस्ससंचियंकम्म" कहा है। तात्पर्य यह है कि लाखों भवों के पूर्व वैर का बदला लेने के लिये सोमिल को क्रोध उत्पन्न हुआ। पूर्व भव का वैर इस प्रकार कहा जाता है गजसुकुमाल का जीव पूर्व भव में एक राजा की रानी के रूप में था। उसकी सौतेली रानी के पुत्र होने से सौतेली रानी बहुत आहत हो गई, इस कारण उसे सौतेली रानी से बहुत द्वेष हो गया और चाहने लगी कि किसी भी तरह से उसका पुत्र मर जाय। संयोग की बात है कि पुत्र के सिर में गुमड़ी हो गई और वह पीड़ा से छटपटाने लगा। विमाता ने कहा-मैं इस रोग का उपचार जानती हूँ, अभी ठीक कर देती हूँ। इस पर रानी ने अपने पुत्र को विमाता को दे दिया । उसने उड़द की मोटी रोटी गर्म करके बच्चे के सिर पर बाँध धी । बालक को भयंकर असह्य वेदना हुई । वेदना सहन न हो सकी और तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो गया। कालान्तर में बच्चे का जीव सोमिल, और विमाता का जीव गजसुकुमाल के रूप में उत्पन्न हुआ। इस पूर्व वैर को याद करके ही सोमिल को तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और बदला चुकाने के लिये ध्यानस्थ मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बाँधकर खैर के धधकते अंगारे रखे। कहा भी है-'कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि' अर्थात् कृत कर्मों को भोगे बिना मुक्ति नहीं होती। जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते-गंगदत्त श्रावक की तरह (जिसका वर्णन भगवती सूत्र शतक 16 उद्देशक 5 में उपलब्ध

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