Book Title: Antar Ki Aur
Author(s): Jatanraj Mehta
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 65
________________ 64 ४४. अनन्त का स्वागत हे मेरे प्रभो, हे मेरे विभो ! तू मेरे अत्यन्त निकट है पलक झपकते ही मैं, तुझ रूप बन जाता हूँ. तू ही मुझ में भासने लगता है यह क्रिया क्षण भर में हो जाती है । प्रभु आपका स्मरण ही अन्तर्चेतना को ऊपर ले जा सकने में समर्थ है मेरे प्रभो, मेरे विभो उस अनन्त के स्वागत की अपने में क्षण-क्षण तैयारी कर रहा हूँ प्रभु किसी भी क्षण आ जाये तो अपने में समा लूँ।

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