Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 41
________________ (४०) लब्धा श्रीरिह वांछिता वसुमती भुक्ता समुद्रावधिः प्राप्तास्ते विषया मनोहरतराः स्वर्गेपि ये दुर्लभाः।। पश्चाचेन्मृतिराग मिष्यति ततस्तत्सर्वमेतद्विषा श्लिष्टं भोज्यमिवातिरम्यमपि धिग्मुक्तिः परं । . मृग्यतां ॥१०॥ भावार्थ:-आ संसारमा लक्ष्मी प्राप्त थई समुद्र पर्यंत पृथ्वीन राज्य भोगव्यु, अने स्वर्गमां पण नहीं भोगववा मळे तेवा विषय भोग मळ्या; पण आखर मृत्यु तो थवानुं छेज, वास्ते आ बधा रळीआमणा सुरखने धिक्कार छे. कारण एवं सुख तो विष मेळवेला भोजन जेबु कहेवाय माटे मुक्ति जे छे तेज साचुं सुख छे एम समजवू. युद्धे तावदलं रथेभतुरगा वीराश्च दप्ता भृशं मंत्राः शौर्यमसिश्च तावदतुलाः कार्यस्य सं साधकाः॥ राज्ञोऽपि क्षुधितोऽपि निर्दयमनायावजिघत्सुर्यमः क्रुद्धो धावति नैव सन्मुखमितोयत्नो विधेयो बुधैः॥४१॥

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