Book Title: Angarak
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 8
________________ 32 मुनिराज के अलावा तो अभी तक यहाँ कोईनहीं आया, लगता है वही नहीं-नहीं वही पापी अधम धूर्त.. जो मेरे नगीने को.. मुक्ति-कॉमिक्स और अत्यन्त कुछ होकर अंगारक मुनिराज को मारने जंगल की ओर चल दिया।। अरे ! तुम्हें पता है कि तुम क्या कह रहे हो ? अचौर्य| महाव्रत के धारी मुनिराज क्या कभी ऐसा अधम कार्य कर सकते हैं ? आह! मैं क्या सुन रही हूँ ? अरी धरती ! तू फट क्यों नहीं गई.. | काश! आज मैं बहरी होती । अरे ! वह देखो ! वही है धूर्त चोर देखता हूँ

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