Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 401
________________ अध्ययन बोनासन अहावर उत्या भावना:- परिजाइ ले गये, पो भयसीए सियाः देवली या मयारे भी तनावग्जा मोसे व्यपार । न्यं परिजाइ के लिये, स्यमील लिया। चडत्या भावना __ अहावरा पंचना भावगाः-हानं परिजाणइ से निगये, पो य हारगर सिया: बली व्या-हात्तपत्ते हाती समावनेजा नाले व्यपार। हानं परिजाप से गिगये, पो यहासागर लिय चि पचना भावणा । एतावनाब महलए सन्नं शरन पसलिए जाव आ र आराहिते या वि भवति । बोचं भले महत्वयं (२०४५) अहा नई महद:-पत्रस्तति सवं अदिगा दान ले गाने वा णारे वा अरन्गे का अयं वा हुं वा अणु वा थूल वा चि चायी भावना ए के निये भयर्नु स्वल्प जानी भभीरू न यो केमके जेवजी कई के के भी पुरुष मृषा बोली जाप. मटे भीरू र यदु ए चोर्थी भारना-१०४ पांचमी भावना ए के ज्ञातुं स्वरूप जागी निये हास्य करनार न यई मो केरी कहे छ के हाव करनार पुल मा बोली माय, माटे प्रिय हास्य करनार न यई ए पांचमी भावना. [१०४४) ए भावनाओयी मानन रखीरीले पाए को सभित अने या आजा प्रमागे आराधित याय . ए बाहुं महात. [१०४३ - बाई महान्तः-"सर्व अनुत्ताजन नजुई. एटल के गाम नगर के अरण्यमां रलं. याई के , ना मोहोई. सचिन के अवित्त अगदोधे (1) हूं

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