Book Title: Anangdhara
Author(s): Veersaagar Jain
Publisher: Jain Jagriti Chitrakatha

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Page 17
________________ | फिरसर्दीकाभौसम आया अनंगधरा इस प्रकार मौसमबीतने लगे अनंगधशको संसारको असारता कायामआया भगवान ये संसारबडादुःस्व पूर्ण है जो मेरे चक्रवर्ती की पुषीका पुष्प (देव अब मैक्या प्रत्येक जादु स्पायी होने पर मुयद्रव झेलने पड़ प्रत्येक द्रव्य अपनी अपनी पर्यायका कर्ता है। कोई भी परका कर्ता नहीं है। भने बचपन में सीखा है कि प्रत्येकजीव अपनी भूलके करण दुश्ची है, परपदार्थ के कारणनहीं। ooc रिवह इस प्रकार नराग्यप्रगट आत्म भावना में लीनहाने भगी अतः हमें जगतके इप्रति रागद्वेष नकरके समताभाव धारण करना चाहिये और अपने स्वरूप (में सावधान रहना चाहिए। recoo

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