Book Title: Anand Pravachan Part 10
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 427
________________ शोलवान मात्मा ही यशस्वी ४.३ समाज-सेवा और साधना का परित्याग न करेगी।' उधर कौशिक ने अक्का के साथ विवाह को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था, इसलिए शीलवती की कठोर शर्त मंजूर की । विवाह तो हो गया लेकिन अक्का अब भी अपनी आजीवन ब्रह्मचर्यपालन की , प्रतिज्ञा पर दृढ़ रही । उसने अपने प्रभाव से अपने कामुक पति को भी सन्त बना दिया । अब तो अक्का और कौशिक दोनों ब्रह्मचर्यनिष्ठ (शीलवान) बनकर धर्मप्रधान संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं समाज-सेवा में संलग्न हो गये। कर्णाटक पाश्चात्य सभ्यता के चेप से बहुत कुछ बचा रहा, यह अक्का महादेवी के शील-संयमनिष्ठ रहकर धर्म-संस्कृति एवं अध्यात्म के प्रचार-प्रसार का परिणाम है। क्या अक्का महादेवी की शीलनिष्ठ आत्मा यशस्वी और अध्यात्म विकास से समृद्ध नहीं बनी ? अवश्य बनी। शीलवती आत्मा के शील का चेप यही कारण है कि शीलवती आत्मा के शील का चेप हजारों नर-नारियों को लगता है । उसकी आत्मा में ऐसी चुम्बकीय शक्ति होती है कि सहसा शीलवत ग्रहण करने की इच्छा हो जाती है। शीलवान ईसामसीह ने पत्थरों से मारकर समाप्त करने जा रहे लोगों को रोका और उस वेश्या को उपदेश देकर पवित्र एवं शीलनिष्ठ बनाया। देश, समाज और धर्म की सेवा के लिए जो व्यक्ति देश-सेवा, समाज-सेवा या धर्म-सेवा दत्तचित्त होकर करना चाहता है, उसे पूर्णतः शीलपालन करना आवश्यक है। उसके बिना वह अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल नहीं हो सकता। महात्मा गांधी ने जब देश-सेवा के लिए अपने को समर्पित करने का विचार किया, तब उन्होंने सोचा-अब हमें पूर्ण ब्रह्मचर्य स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि देश-सेवा और विषय-वासना से प्रेरित होकर सन्तानोत्पत्ति करते जाना, ये दोनों कार्य साथ-साथ नहीं चल सकते। इसलिए उन्होंने अपनी धर्मपत्नी कस्तूरबा से इस विषय में परामर्श किया, वह तो पहले से तैयार थी हीं। बस, दोनों ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली। महात्मा गांधी की शीलनिष्ठ आत्मा ने देशसेवा में पूरी तरह से जुटकर सफलता प्राप्त की, भारत को आजाद कराया और महान यश उपार्जित किया। . रामकृष्ण परमहंस ने भी अपने आपको कालीमाता की भक्ति में समर्पित करने का विचार किया तो विवाह की पहली ही रात (सुहागरात) से ही अपनी धर्मपत्नी शारदामणि देवी को उन्होंने 'माता' मान लिया, ताकि विषय-वासना से यह देह अपवित्र न हो । आजीवन शीलबद्ध होकर पति-पत्नी दोनों कालीमाता की भक्ति में संलग्न हो गये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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