Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 32
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsan Gyanmandir आकाशगामिनी विद्याकल्प अथ ध्यान-ध्यायेच्चंडा घनश्यामां, युवतिं भूरि भूषणाम् । हस्ताभ्यामंकुशं पाशं, दधानां सुस्मिताननाम् ॥१॥ १०,००० जापः त्रिमध्वाक्त श्वेतकरवीरैः १००० होम मूलं षडंगी षोडषौषधं १६ लक्ष्यः इन्द्रादि वज्रादि इत्यावरणार्चनं अगर इस मंत्रका जाप कर साधले उपर प्रमाणसे तो इसके जितने प्रयोग है वह सब कार्य सिद्ध करता है निसंदेह हैं एसा लिखा है श्रीनागार्जुनकृतगोपीचक्रं कल्पम् अथौषधिकल्प विवरणम् | नृप, भागरो, । सहदेवी सखी, मयरशिखा, जारी, पतंजारी | कलपकलपकी भषजी । लले धार || भंडार॥ताभवन कोयंत्रइह । कीयो भीता, लज्जालु, मोहोवड वडपत्रकी पाणी, इन्द्रवारुणी हाथाजोडी नागार्जुन धार ॥१॥ षोडष भवना भेषजी । आदिही कलप॥प्रसिद्ध कुपल ६ । ररि, श्वेतार्क चंडाली,कंकाहारी, अजा,मीढासिंगी | रंभा, गिरिरभा, दोहाका अंक जोडिये । करिलेवो इन विधि॥२॥नवरत्रय षोडश१६ संखाहोली १५ । | गोरोचन १४ चाष्टमी ८ाएओषध घसि सोइ ॥ जटा, रुद्रजटा, छड, नर, अघाधड | कन्यवाझकंकोडी| हस्तु, रुद्रदती भालतिलक जो कीजीये । देख राजहंसी५ । १० | दृष्टि वसि होइ ॥३॥ For Private And Personal use only

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