Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 159
________________ 157 परिशिष्ट हिंसक आतंकवादी थे। अतः इस बात पर विचार किया जा सकता है कि Convention on Prevention and Punishment of Terrorism 1937 द्वारा परिभाषित आतंकवाद की इस परिभाषा- "Criminal Acts diverted against a state and intended or calculated to create a state of terror in the minds of Particular Persons, a group of Persons or the general Public." को क्या हम एक पूर्ण परिभाषा कह सकते हैं? प्रत्येक मानव के अन्दर सत्व, रज और तम ये तीन गुण मौजूद होते हैं किन्तु प्रकट रूप में किसी एक गुण की प्रधानता होती है। यहाँ यह अन्तर स्पष्ट करना अनुचित प्रतीत नहीं होता कि हमारी मूल समस्या आतंकवाद है न कि आतंकवादी।व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन, उसकी ऊर्जा का सृजनात्मक दिशा में उपयोग हो सके ऐसे अवसरों का अभाव, अभिव्यक्ति का ह्रास, प्रियजनों के द्वारा दिया जाने वाला धोखा, उनका अकारण वियोग, अनावश्यक समाजिक दबाव और अच्छे संस्कारों की शून्यता तथा धार्मिक कट्टरता और इन सभी कारणों से उत्पन्न मानव मन में किसी अनैतिक और अनिष्टकारी लक्ष्यों का उत्पन्न होना और उसके द्वारा उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हृदय में उठने वाले भाव, मस्तिष्क में आने वाले विचार और उनके रवैयों को हम किसी हद तक आतंकवाद कह सकते हैं। आतंकवाद की जड़ आतंकवाद की कोई उम्र नहीं होती। दो वर्ष का बालक यदि चॉकलेट न मिलने पर डंडे से घर का टी.वी. फोड़ता है तो क्या उसे हम आतंकवाद का शैशव काल नहीं मानेंगे? इस आधार पर हम"आतंक" को मूल जड़ से समझने का प्रयास करेंगे। बालमन में आतंक के बीज आज किन्हीं दस बालकों को चुनकर एक बड़ी खिलौनों की दुकान में अकेले छोड़ दिया जाये और यह स्वतंत्रता दी जाए कि वे इस पूरे भण्डार में अपनी पसंद का कोई एक खिलौना चुनकर बाहर ले आयें तो निश्चित तौर

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