Book Title: Agamsaroddhar
Author(s): Devchandramuni
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
अभ्यंतर कहतां त्रण वेद, अने हासादिक पट, एक मिथ्यात्व ए दश, अने क्रोधादिक चार कपाय, ए चौदह प्रकारे अभ्यन्तर; अने धन, धान्य, क्षेत्र, वथु, रू, सावन, दुपय, चउपय, कुवय ए नव प्रकार बाह्य परिग्रहना. अने आगले चौदह प्रकार का ते अभ्यंतर परिग्रह जाणवो. एणी रीते बाह्य अभ्यंतर थइने प्रवीश प्रकारे परिग्रह रूप गंठीने भेदे कहतां छेदे तेहने साध मुनिराज कहिये. अने वली साधु कोने कहिये ? तो के, तत्व अभ्यासे तिहां साधु पंथ एटले तत्व कहतां पोताना आत्मतत्वने निपजावा, अने अभ्यासे कहतां तेहनां अभ्यासने विष सदाकाल निरंतर पणे जेहनो उपयोग प्रते
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480