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आगम के अनमोल रत्न
पद्मावती की प्रार्थना को सुनकर भगवान अरिष्टनेमि ने प्रव्रज्या दी और यक्षिणी आर्या के सुपुर्द कर दी। इसके बाद यक्षिणी आर्या ने पद्मावती देवी को प्रवजित किया और सयम में सावधान - रहने की शिक्षा दी । संयम लेने के बाद पद्मावती साध्वी ने सामायिकादि ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया और साथ ही साथ उपवास बेला, तेला, चोला, पंचोला, पन्द्रह - पन्द्रह दिन की तपस्या करती हुई विचरने लगी | पद्मावती आर्या ने पूरे बीस वर्ष तक चारित्र का 'पालन किया । अंत में एक मास की संलेखना की और साठ भक्त का - अनशन करके जिस कार्य के लिये संयम ग्रहण किया था उसका अन्तिम - श्वास तक आराधन किया और अन्तिमश्वास में केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हुई ।
महारानी पद्मावती की तरह कृष्ण की दूसरी पटरानी गौरी ने भी प्रव्रज्या ग्रहण की और सिद्धि प्राप्त की ।
इसी प्रकार कृष्णवासुदेव की गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्ब वती, सत्यभामा, रुक्मिणी इन छ रानियों ने भी पद्मावती की तरह दीक्षा ग्रहण की और अन्तिम श्वास में केवली बन कर मोक्ष में गई ।
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मूलश्री और मूलदत्ता
द्वारिका नगर के अधिपति कृष्णवासुदेव के पुत्र एवं जाम्बवती के आत्मज शाम्बकुमार थे। उनकी रानी का नाम मूलश्री था । मूलश्री अत्यन्त सुन्दरी और कोमलांगी युवती थी । उसने भगवान अरि—टनेमि का उपदेश सुना । उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और • कृष्णवासुदेव से आज्ञा प्राप्त कर पद्मावती रानी की तरह इसने भो प्रव्रज्या • ग्रहण की और सिद्धपद प्राप्त किया । शाम्बकुमार की दूसरी रानी मूलदत्ता ने भी प्रवज्या ग्रहण की और मूरुश्री की तरह सिद्धि प्राप्तकी । दमयन्ती
विदर्भ देश को राजवानी का नाम था कुण्डिनपुर । वहाँ भीम नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम था पुष्प