Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 11
________________ सम्पादकीय श्रमणसस्कृति का अतीत अत्यन्त उज्ज्वल भऔर प्रेरणाप्रद रहाहै । मानव-पवित्रता की रक्षा के लिये इस आध्यात्ममूलक संस्कृति ने कितना भारी संघर्ष किया है, कितनी यातनाएँ सहीं, यह तो इसका इतिहास ही बतायेगा। निवृत्ति-मूलक प्रवृत्ति द्वारा इस परंपरा ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मौलिक स्वरूप को सङ्कटकाल में भी अपने आप को होमकर, सुरक्षित रखा। भारतीय नैतिकता और परंपरा की रक्षा श्रमण एवं तदनुयायी वर्ग ने भली भांति की । उसमें सामयिक परिवर्तन एव परिवर्धन कर जागतिक सुखशांतिको स्थिर रखा, मानव द्वारा मानव-शोषण की भयङ्कर रीतिका घोर विरोध कर समत्व की मौलिक भावना को अपने जीवन में मूर्तरूप देकर जन-जीवन में सत्य और अहिंसा की प्रतिष्ठा की। अनुभव-मूलक ज्ञान-दान से राष्ट्र के प्रति जनता को जागृत किया। आध्यात्मिक विकास के साथ साथ समाज और राष्ट्र को भी उपेक्षित न रखा । ज्ञानमूलक आचारों को अपने जीवन में साकार कर जनता के सामने चरित्रनिर्माग विषयक नूतन आदर्श उपस्थित किया, और आध्यात्मिक साधना में प्राणी मात्र को समान अधिकार दिया । मानवकृत उच्चत्व नीचत्व की दीवारों को समूल नष्ट कर अखण्ड मानव-संस्कृति का समर्थन किया । इन्हीं कारणों से श्रमण संस्कृति की धारा आज भी अखण्ड रूप से बह रही है । सामाजिक शाति के बाद उनका अन्तिम ध्येय था मुक्ति । इस अध्यात्ममूलक श्रमण संस्कृति के प्रतिनिधि महापुरुषों का कमबद्ध इतिहास आज हमारे सामने उपलब्ध नहीं है । किन्तु इस विषय के साधनों की कमी नहीं है। भगवान महावीरके सिद्धातों का प्रतिपादन करने वाले आगम ग्रन्थों, चूर्णियों टीकाओं एवं भायों में श्रमण संस्कृति के प्रकाशस्तंम सम हजारों महापुरुषों के त्याग, वैराग्य, संयम, क्षमा, तप भौर अहिंसा का भव्य दिव्य एवं हृदय सी वर्णन मिलता है।

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