Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विसुद्धा, महाहिस्सी उत्तम ठगणं पत्ति॥४०५॥ ति बेमि, हरिएसझयणं १२॥ जाईपराजिओ खलु कासि नियाणं तु हथिणपुरंमि।चुलणीइ बंभदत्तो उववन्नो नलिण (पउम्) गुम्माओ॥६॥ कंपिल्ले संभूतो चित्तो पुण जाओ पुस्मितालमिी सिद्धिकुलंमि विसाले धम्म सोऊण पवइओ॥७॥ कंपिल्लमि य नयरे समागया दोऽवि चित्तसंभूया। सुहदुक्खफलविवागं कहिति ते इकमिकरसा॥चक्कवट्टी महिड्डीओ, बंभदत्तो महायसोभायरं बहुमाणेण, इमं वयणमब्बवी॥९॥ आसिमो भायरा दोऽवि, अनमत्रवसाणुगा। अनमत्रमणुरत्ता, अनमत्रहिएसिणो ॥१०॥ दासा दसत्रये आसी, मिआ कालिंजरे नगे। हंसा मयंगती राए, सोवागा कासिभूमिए॥१॥ देवा य देवलोगमि, आसि अम्हे महिड्डिआइमा णो भे) छट्ठिया जाई, अन्नमन्नेण जा विणा ॥२॥ कमा लियाणप्पगडा, तुमे राय! विचिंतिया। तेसिं फलविवागेणं, विप्पओगमुवागया॥३॥ सच्चसोअप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडाते अज परिभुंजामो, किं नुचित्तेवि से तहा?॥ सव्वं सुचिएणं सफलं नाणं, कडाण कम्माण न मुक्खु अत्थिा अत्येहि कामेहि य उत्तमेहिं, आया ममं पुण्णफलोववेओ५॥ जाणाहि संभूय! महाणुभाग, महिड्ढियं पुण्णफलोववेयो चित्तंपि जाणाहि तहेव रायं!, इड्ढी जुई तस्सवि अप्पभूआ॥६॥ महत्थरूवा वयणप्पभूया, गाहाणुगीया नरसंघमझेोज भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहऽज्यंते समणोऽम्हि जाओ॥७॥ उच्चोअए महकक्के य बंधे, पवेइया आवसहा य (इ) रम्मा। इमं गिहं विचित्तषणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोववेय।। ॥ नटेहि गीएहि य वाइएहि, नारीजणाहिं परिवारयंतो (पवियारियंतो) भुंजाहि ॥ श्रीउनयम्ययास्त्र । पू. सागरजी म. संशोभित। For Private And Personal

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