Book Title: Agam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||नियमजुत्त॥६॥हंदि अणिच्चा सद्धा सुई य जोगा य इंदियाइं चो तम्हा एयं नाउँ विहरह तवसंजमुज्जुत्ता ॥७॥ता एयं नाऊणं ओवायं|| नाणदंसणचरितो धीरपुरिसाणुचिनं करिति सोहिं सुयसमिद्धा ॥८॥ अब्भिंतरबाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं। तिविहेण तिविहकरणे तिविहे काले वियडभावः ॥९॥परिणामजोगसुद्धा उवहिविवेगं च गणविसग्गे योअजाइयवस्सयवजणं च विगईविवेगं च ॥१६०॥ उग्गमउप्पायणएसणाविसुद्धिं च परिहरणसुद्धिो सन्निहिसंनियंमि य तववेयावच्चकरणे य ॥१॥ एवं करंतु सोहि नवसारयसलिलनहयलसभावा। कमकालदव्वपज्जवअत्तपरजोगकरणे य ॥२॥ तो ते क्यसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामी युप्फावकिन्नयम्मि य तवम्मि जुत्ता महासत्ता ॥३॥ तो इंदियपरिकम करिति विसयसुहनिग्गहसमत्था। जयणाइ अप्पमत्ता रागहोसे प्यणुयंता ॥ ४॥ पुव्वमकारियजोगा समाहिकामावि मरणकालम्मिान भवंति परीसहसहा विसयसुहपमोइया अध्या ॥५॥ इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरझो। अक्यपरिकम कीवो मुज्दाइ आराहणाकाले ॥ ६॥ वाहंति इंदियाई पुट्विं दुन्नियमियप्पयाराइं अकयपरिकम कीवं मरणे सुअसंपउत्तंपि ॥७॥आगममयप्पभाविय इंदियसुहलोलुयापइट्ठस्सा जइवि मरणे समाही हुजन सा होइ बहुयाणं ॥ ८ ॥ असमत्तसुओऽवि मुणी पुब्बिं सुक्यपरिकम्मपरिहत्थो। संजमनियमपइन्न सुहुमत्तहिओ सभण्णेइ ॥९॥न चयंति किंचि काउं पुब्धि सुक्यपरिकम्मजोगस्सा खोहं परीसहचमू धिइबलपराइया भरणे ॥ १७०॥ तो तेऽवि पुवचरणा जयणाए जोगसंगहविहीहिं । तो ते करिति दसणचरित्तसइ भावणाहे॥ शो जो पुब्वभाविया किर होइ सुई चरणदसणे || श्री मरणसमाथि सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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