Book Title: Agam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुक्खपडिवक्खा॥३॥ अमुणिअभणपरि (प्र० घ) कम्मो सम्मको नाम नासि तरह वम्भहसरपसरोहे दिद्विच्छोहे मयच्छीणं? ॥४॥ घणमालाओवदूरून्नभंतसुपओहराउ वढंति मोहविसं महिलाओ आलकविसंव पुरिसस्स ॥५॥परिहरसुतओ तासिं दिलुि दिट्ठीविसस्स व अहिस्साजरमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति ॥६॥ महिलासंसग्गीए अग्गीइवं जंच अप्पसारस्सामयणवं मणो मुणिणोऽवि|| हंत खणेणं चिअविलाइ॥७॥ जइवि परित्तसंगो तवतणुअंगो तहावि परिवडइ महिलासंसग्गीए कोसाभवणूसिअव्व रिसी ॥८॥ सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जुव्व्णजलाए। पहसिअफेणाइ मुणी (प्र०के के जयंमि पुरिसा) नारिनईए न बुझ्ति? ॥९॥विसयजलं मोहकलं विलासविब्बोअजलयराइन्नी मयमयरं उत्तिन्ना तारूण्णमहन्नवं धीरा॥ १३०॥ अभिंतरबाहिरए सव्वे संगे (प्र० गंथे) तुम विवजेहि कयकारिअणुमईहिं किलेससयकरए निच्चं॥ १॥ संगनिमित्तं मारइ भणइ अलीअं करेइ चोरिको सेवइ मेहुण मुच्छं अपरिमाणं कुणइ जीवो॥२॥संगो (प्र० गंथो) महाभय जं विहेडिओ सावरण संतेणी पुत्तेण हिए अत्थंमि मणिवई कुंचिएण जहा| ॥ ३॥ सव्वग्गंथविमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो योजं पावइ मुत्तिसुहं न चक्कवट्टीवि तं लहइ॥ ४॥ निस्सलस्सेह महव्वयाई अक्खंडनिव्वणगुणाई। उवहम्मति य ताई नियाणसल्लेण मुणिणोऽवि ॥५॥ अह रागदोसगळ मोहग्गब्भं च तं भवे तिविही धमत्थं हीणकुलाइपत्थणं मोहगतं ॥६॥रागेण गंगदत्तो दोसेणं विस्सभूइमाईआमोहेण चंडपिंगलमाईआहुति दिटुंता॥७॥अगणि जो मुक्खसुहं कुणइ निआणं असारसुहहे। सो कायमणिकएणं वेरूलिअमणिं पणासेइ॥८॥ दुक्खक्ख्य कम्मक्खय समाहिमरणं [ ॥श्रीमतपरिना सूत्र] | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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