Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ कहीं पर अल्पवृष्टि है, कहीं पर अनावृष्टि है, कहीं पर भूकम्प पा रहे हैं तो कहीं पर समुद्री तूफान और कहीं पर घरती लावा उगल रही है, कहीं दुर्घटनाएं हैं। इन सभी का मूल कारण क्या है, इसका उत्तर विज्ञान के पास नहीं है। केबल इन्द्रियगम्य ज्ञान से इन प्रश्नों का समाधान नहीं हो सकता / इन प्रश्नों का समाधान होता हैमहामनीषियों के चिन्तन से, जो हमें धरोहर के रूप में प्राप्त है। जिस पर इन्द्रियगम्य ज्ञान ससीम होने से असीम संबंधी प्रश्नों का समाधान उसके पास नहीं है। इन्द्रियगम्य ज्ञान विश्वसनीय इसलिये माना जाता है कि वह हमें साफ-साफ दिखलाई देता है / आध्यात्मिक ज्ञान असीम होने के कारण उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये पात्मिक क्षमता का पूर्ण विकास करना होता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का वर्णन इस दृष्टि से भी बहुत ही उपयोगी है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की प्रस्तावना मैंने बहुत ही संक्षेप में लिखी है। अनेक ऐसे बिन्दु जिनकी विस्तार से चर्चा की जा सकती थी, उन बिन्दुओं पर समयाभाव के कारण चर्चा नहीं कर सका है। मैं सोचता हूं कि मूल पागम में वह चर्चा बहुत ही विस्तार से पाई है अतः जिज्ञासु पाठक मूल आगम का पारायण करें, उनको बहुत कुछ नवीन चिन्तन-सामग्री प्राप्त होगी। पाठक को प्रस्तुत अनुवाद मूल पागम की तरह ही रसप्रद लगेगा / मैं डॉ. शास्त्री महोदय को साधुवाद प्रदान करूगा कि उन्होंने कठिन श्रम कर भारती के भण्डार में अनमोल उपहार समर्पित किया है, वह युग-युग तक जन-जन के जीवन को पालोक प्रदान करेगा / महामहिम विश्वसन्त अध्यात्म यप्रवर पूज्य मुरुदेव श्रीपुष्करमुनि जी महाराज, जो स्वर्गीय युवाचार्य मधुकर मुनि जी के परम स्नेही-साथी रहे हैं, उनके मार्गदर्शन और आशीर्वाद के कारण ही में प्रस्तावना की कुछ पंक्तियां लिख सका है। सुज्ञेषु किं बहुना ! ज्ञानपंचमी/१७-११-८५ जैनस्थानक वीरनगर दिल्ली-७ -देवेन्द्रमुनि [ 53 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org