Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
||णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि जाव चारं चरति तदा णं केमहालिया राई भवई?, गो० त्या णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ||
चाहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अणे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि य एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अणे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चहिं |एगसट्ठिभागमुहत्तेहिं अहिआ, एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे २ दो दो एगट्ठिभागमुहुत्ते एगमेगे मंडले दिवसखित्तस्स निव्वुद्धेमाणे २ रयणिखित्तस्स अभिवर्तमाणे २ सव्वबाहिरं मंडलं उक्संकमित्ता चारं चरइ, जया णं सूरिए सव्वब्तराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरमंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदिअसएणं तिणि छावढे एगसट्ठिभागमुहत्तसए दिवसखेत्तस्स निव्वुद्धता रयणिखेत्तस्स अभिवुद्धेता चारं चरइ, जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ?, गो०! त्या णं| उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवइ जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमस्स|| छम्मासस्स पज्जवसाणे, से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, जया णं भंते! सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ त्या णं केमहालिया दिवसे भवइ केमहालिया राई भवई ?, गो०! अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं एगसद्विभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसहिभागमुहुत्तेहिं अहिए, से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसिअहोरसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ,जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ॥श्री जंबूद्वीप प्रजप्ति सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225