Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव अणुपरियत्ताणं गेण्हित्तए।
देवे णं भंते ! महिड्डिए बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पुव्वामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्तए ? नो इणढे समढे।
देवे णं भंते ! महिड्डिए बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बालं अच्छित्ता अभित्ता पभू गंठित्ता? नो इणढे समढे। ___ देवे णं भंते ! महिड्डिए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पुव्वामेव बालं अछेत्ता अभेत्ता पभू गंठित्तए ? हंता पभू। तं चेव णं गंठिं छउमत्थे ण जाणइ, ण पासइ, एवं सुहुमं च णं गंठिया।
देवे णं भंते ! महिड्डिए पुव्वामेव बालं अच्छे त्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा? नो इणढे समढे । एवं चत्तारिवि गमा, पढमबिइयभंगेसु अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता, अभेत्ता सेसं तदेव। तं चेव सिद्धं छउमत्थे ण जाणइ, ण पासइ। एवं सुहुमं च णं दीहीकरेज वा हस्सीकरेज वा।
१९०. भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव (अपने गमन से) पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है?
हां, गौतम! वह ऐसा करने में समर्थ है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह वैसा करने में समर्थ है ?
गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगति वाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है , जबकी उस महर्द्धिक और महाप्रभावशाली देव की गतिपहले भी शीघ्र होती है और बाद में भी शीघ्र होती है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि वह देव उस वस्तु को पकड़ने में समर्थ है।
भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना और किसी बालक को पहले छेदे-भेदे बिना उसके शरीर को सांधने में समर्थ है क्या ?
नहीं, गौतम ! ऐसा नहीं हो सकता?
भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके परन्तु बालक के शरीर को पहले छेदे-भेदे बिना उसे सांधने में समर्थ हैं क्या?
नहीं गौतम ! वह समर्थ नहीं हैं।
भगवन! कोई महर्द्धिक एवं महाप्रभावशाली देव बाह्य पुद्गलों को ग्रहण कर और बालक के शरीर को पहले छेद-भेद कर फिर उसे सांधने में समर्थ है क्या?
हां, गौतम! वह ऐसा करने में समर्थ है । वह ऐसी कुशलता से उसे सांधता है कि उस संधि-ग्रन्थि