Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५८१
अथ षष्ठगमं निरूपयति-'सो चेव उक्कोसकालटिइएस उववन्नो' स एवोत्कृष्ट स्थितिकेषु उपपन्नः, स एव असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवो यदि उत्कृष्टकालस्थितिकासुरकुमारेषु समुत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं सातिरेगपुबकोडिभाउएसु' जघन्येन सातिरेकपूर्वकोटयायुष्केषु असुरकुमारेषु तथा'उकोसेण वि साइरेगपुवकोडि आउएसु उपवज्जेज्जा' उत्कर्षेणाऽपि सातिरेक पूर्वकोट्यायुष्केषु असुरकुमारेषु उत्पयेत, 'सेसं तं चे' शेषं तदेव एतद्व्यतिरिक्तं सर्व प्रश्नोत्तरादिकम् पूर्वरदेव बोद्धव्यम् । एक समयेन कियन्त उत्पद्यन्ते इति प्रश्नस्थितिद्वार जो कि १७ वां द्वार है और बीसवां द्वार जो कायसंवेधद्वार है उसे विचार कर कहलेना चाहिये इस प्रकार यह पांचवां गम है।
छठा गम इस प्रकार से है-'सो चेव उक्कोसकालविएसु उवचनो' यदि वही असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उस्कृष्ट काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है तो 'जहन्नेणं सातिरेगपुव्वकोडिभाउएतु 'जघन्य से सातिरेक पूर्वकोटि की आयुवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है और 'उक्कोसेण वि साइरेग पुषकोडिए सु उवव०' उत्कृष्ट से भी वह सातिरेक पूर्वकोटि की आयुवाले असुरकु. मारों में उत्पन्न होता है। 'सेसं तं चेव' इस कथन के सिवाय और सब प्रश्नोत्तररूप कथन है वह सब कथन यहां पूर्वोक्त जैसा ही जानना ७ चाहिये, जैसे-ऐसे वे जीव वहां कितने उत्पन्न होते हैं ? तो इसका દ્વાર છે અને ૨૦ વસમું જે કાયસંધ દ્વાર છે તે વિચારીને કહી से नये.
આ રીતે આ પાંચમે ગમ કહ્યો છે. वे छही गम वामां आवे छे–'सो चेव उक्कोसकालढिइएसु उववन्नो' જે તે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળે
१ पृष्ट जनी स्थितिवाणा मसुरमाश पन थाय तो 'जहन्नेणं सातिरेक पुवकोडी आउएस' पायथी सातिरे ४-५ टिनी मायुष्यवाणा असु२४भामा ५-1 थाय छे. अथ। 'उकोसेण वि साइरेगपुव्वकोडि. एसु उवव.' थी ५९ साति२४-पूटिनी भायुप्या मसु२ भा. शमा उत्पन्न थाय छे. 'सेस तं चेव' मा ४थन शिवायनु माडीनु प्रश्नोत्तर રૂપ તમામ કથન અહિયાં પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું. જેમકે-એવા તે જીવે ત્યાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે? તે તે પ્રશ્નનો ઉત્તર એ છે કે-એવા તે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪