Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 9
________________ आध्यात्मिक शोध जीवनतंत्रना रहस्यनी जिज्ञासामांथी आध्यात्मिक शोधनुं झरण फूटे छे. ए जिज्ञासा ज आध्यात्मिक शोधनो मूळ पायो छे. आपणा देशमा जे जे महान आत्मशोधको थया छे, जेने आपणे संतो कहीये छीए तेओ ए जिज्ञासाथी ज प्रेराइने जीवन अने जगतनी गूंच उकेलवा पोते करेली प्रवृत्तिनो जुदो जुदो वृत्तांत पोतपोतानी शैलीथी मूकी गया छे. जेमनां बुद्धि अने मन ठीक ठीक विकास पाम्यां छे एवा संस्कारसंपन्न, आरोग्यसंपन्न, तेजखी, आत्मशोधक मुमुक्षु लोकोने पूर्वोक्त जिज्ञासाथी आ नीचेना केटलाक प्रश्नो थाय ते तदन स्वाभाविक छे. आ जगत ए शुंछे ! आ बधी मोहमाया ए शुं छे ? जगतमां दुःख अने असंतोषनां कारणो कयां छे! ते टळी शके के नहि ! टळे तो केवी रीते ! हुँशु छ ? हुं क्याथी, शामाटे, क्यारे अने केवी रीते आ जगतमा आव्यो छु ! जो हूं कोई जुदो छु तो सदाने माटे आ विश्वथी मारो छुटकारो थशे के नहि ? आ जगतनी उत्पत्ति क्यारे, केवी रीते, शामाटे अने. कोने माटे कोणे करी! शु आ विश्व कोई वार नाश पामशे के नहि ? जो नाश पामशे तो आ बधा पदार्थो-नदी, समुद्र, पहाड, जंगलो, प्राणीओ ए बधुं क्यां जशे ! हुं पोते क्या जईश! शुं विश्वना प्रलय पछी हुँ रहेवानो छु ! जो रहीश तो कया आकारमा अने कोने आधारे? जो नहि रहुं तो तेनुं शुं कारण ! शुं एवी कोई विशेष शक्ति के के जे आ विश्वने फरीथी सर्जी शके ! आ बधा प्रश्नो काई भाजकालना नवा नथी पण वेदकालनी शरूआतथी एटले के ज्यारे आर्यगण संस्कारसंपन्न अने बुद्धिसंपन्न हतो त्यारथी ज चर्चाता आल्या छे. आ प्रश्नो साथे आध्यात्मिक शोधने गाढ संबंध छे. टो. उपनिषदो. ब्राह्मणो. आरण्यको वगेरेमां आध्यात्मिक शोध करनारा ते ते दिव्यपरुषोए ए प्रश्नो अने एवा बीजा अनेक प्रश्नो ऊपजावी तेनी चर्चा करेली छे. अने जेम जेम बुद्धिबळ अने आत्मशोध उंडां जतां गया तेम तेम बीजा पण अनेक शोधकोए ए प्रश्नो विषे जुदी जुदी दृष्टिथी पोतपोताना जुदा जुदा विचारो दर्शाव्या छे. वधुमां सांख्याचार्य कपिल, न्यायप्रवर्तक अक्षपाद, विशेषवादी महर्षि कणाद वगेरे अनेक पुरुषोए ए प्रश्नो उपर वधारे प्रकाश आणवा प्रयास कर्यो छे. भगवान महावीरे अने भगवान बुद्धे पण जीवननी गूंच उकेलवाने जे आध्यात्मिक प्रयासो कर्या तेमां पण ए बधा प्रश्नो उपर अवश्य पोतपोतानी दृष्टिए योग्य प्रकाश नाखेलो छे. भगवान बुद्ध विषे कहेवामां आवे छे के ते पोते बालपणथी चिंतनशील प्रकृतिना हता अने तेमनुं मन विश्वनी आ बाह्य प्रवृत्तिमा चोंटतुं न हतुं. माटे ज राजा शुद्धोदने तेमने राखवानी एवी व्यवस्था करेली के ज्यां सदा गानतान, रागरंग, विषयविलास अने अखंड स्वर्गीय सुख तेमने मळे के जेथी तेमनुं मन आ संसारमां चोंटी जाय. पण छेवटे राजा शुद्धोदनना आ बधा प्रयासो निष्फळ गया अने सिद्धार्थ पोतानी स्त्री अने पुत्रने छोडीने मधराते, पोताना चित्तमा रहेली उंडी उंडी उदासीनता अने असंतोषनां कारणो शोधवा नीकळी पड्या. तेमने एवी राजशाहीमा राखेला हता के मंदवाड शें, घडपण शुं अने मरण शुं तेनी सुद्धा तेमने खबर नहिं पडेली. ज्यारे तेमणे मंदवाड, घडपण अने मरण जोयां त्यारे तेओ वधारे विह्वल बन्या अने ए दुःखोना अंतमाटे तेमणे प्रयास करवानुं पण नक्की कयु. भगवान महावीर पण जेमनुं नानपणचें नाम वर्धमान हतुं, जेमना माता अने पितानुं नाम अनुक्रमे त्रिशला अने सिद्धार्थ हता, बचपणथी चिंतनशील अने संस्कारसंपन्न हता. तेमने लगती जैन साहित्यमा जे दंतकथाओ अने परंपराओ मळे छे ते उपरथी एटलं तो तारवी शकाय एम छे के तेमनुं मन आत्मशोध तरफ बचपणथी ज वळेलं हतुं. साथे तेमनामां मातपिता तरफ घणो सद्भाव हतो जेथी तेमणे तेमना आग्रहथी ज गृहस्थाश्रम स्वीकारेलो अने एक पुत्रीना पिता पण थया. तेमणे मातपिताना निर्वाण बाद पोताने बचपणथी ज प्रिय एवी आध्यात्मिक शोधने सबल प्रयत्नपूर्वक चालु करवानुं धारेलु छतां तेओ पोताना वडील बंधुना प्रेमभर्या आग्रहथी एक वर्ष जेटलो वखत वळी राजधानीमा ज रह्या पण ते दरम्यान तेमणे आध्यात्मिक शोधना साधन तरीके परापूर्वथी ज चाल्यो आवेलो संयममार्ग पोताना जीवनव्यवहारमा अमलमा मूक्यो. तेमनी पहेलां श्रमणोनी परंपरामा पार्श्वनाथ नामे एक प्रख्यात युगप्रवर्तक थयेला तेमज वैदिक परंपरामा अनेक प्रकारनां कर्मकांडो अने देहदंडनोनो रिवाज आत्मशोध करवामाटे चालु हतो ज. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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