Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 238
________________ १८० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २४.-उद्देशक २०. पवतियं०१ बितियगमए एस चेव लद्धी । नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडियो चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ-एवतियं० २। १६. सो चेव उक्कोसकालट्टितीपसु उववन्नो जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेजतिभागट्टिइएसु, उकोसेण वि पलिओवमस्स असंखेजइभागट्ठितिएसु उववजंति । [प्र.] ते णं भंते ! जीवा० ? [उ०] एवं जहा रयणप्पभाए उववजमाणस्स असनिस्स तहेव निरवसेसं जाव-कालादेसोति । नवरं परिमाणे जहन्नेणं पक्को वा दो वा तिन्नि वा, उकोसेणं संखेज्जा उववजंति, सेसं तं चेव ३।। १७. सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्टितीएसु, उक्कोसेणं पुवकोडिआउएसु उववजंति । ते णं भंते !- अवसेसं जहा एयस्स पुढविक्काइएसु उववजमाणस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहा इह वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु जाव-अणुबंधो'त्ति । भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई । कालादेसेणं जहनेणं दो अंतोमहत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुषकोडीओ चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ४।। १८. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तवया । नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अट्ट अंतोमुहुत्ता-एवतियं० ५। १९. सो चेव उक्कोसकालद्वितिएसु उववन्नो जहन्नेणं पुवकोडिआउएसु, उक्कोसेण वि पुषकोडिआउपसु उववजहएस चेव वत्तवया । नवरं कालादेसेणं जाणेज्जा ६। २०. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ सञ्चेव पढमगमगवत्तवया । नवरं ठिती जहन्नेणं पुष्पकोडी, उक्कोसेण वि पुचकोडी, सेसं तं चेव । कालादेसेणं जहन्नेणं पुषकोडी अंतोमुहुत्तमम्भहिया, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजहभागं पुवकोडिपुहुत्तमभहियं-एवतियं० ७। २१. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववनो, एस चेव वत्तवया जहा सत्तमगमे । नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं पुषकोडी अंतोमुहुत्तमभहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुष्चकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ-एवतियं० ८ । अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट पूर्वकोटीपृथक्त्व अधिक पल्योपमनो असंख्यातमो भाग-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (१). बीजा गममां पण एज वक्तव्यता कहेवी. पण विशेष ए के काळादेशथी जघन्य बे अन्तर्मुहर्त अने उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहर्त अधिक चार पूर्वकोटी एटलो काळ यावत्-गतिआगति करे (२). असंशी पं० तिर्यंचनी १६. जो ते (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक) उत्कृष्ट काळनी स्थितिवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिथंच योनिकोमा उत्पन्न थाय तो उ० संशी पं० तिर्य जघन्य अने उत्कृष्ट पल्योपमना असंख्यातमा भागनी स्थितिवाळा संज्ञी पं० तिर्यंचमां उत्पन्न थाय. हे भगवन् ! ते जीवो एक समये केटला उत्पन्न थाय-इत्यादि जेम रत्नप्रभा पृथिवीमा उत्पन्न थनार असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचनी वक्तव्यता कही छे तेम यावत्-काळादेश सुधी बधी वक्तव्यता कहेवी. पण विशेष ए के परिमाण-जघन्य एक, बे, के त्रण अने उत्कृष्ट संख्याता उत्पन्न थाय छे. बाकी बधुं ते प्रमाणे जाणवू (३). जघ० असंशी पं० १७. जो ते पोते जघन्यकाळनी स्थितिवाळो होय तो जघन्य अन्तर्मुहर्तनी स्थितिवाळा अने उत्कृष्ट पूर्वकोटी वर्षनी स्थितिवाळा संज्ञी तिर्यंचनी संशी पं० पं० तियंचमां उत्पन्न थाय. हे भगवन् ! ते जीवो एक समये केटला उत्पन्न थाय-इत्यादि पृथिवीकायिकोमा उत्पन्न थता जघन्य आयुषवाळा ..तिर्यंचमां उत्पत्ति. __ असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचने वच्चेना त्रण गममा जेम का छे तेम अहिं पण त्रणे गमकोमा यावत्- अनुबंध सुधी बधुं कहे. भवादेशथी जघन्य बे भव अने उत्कृष्ट आठ भव तथा काळादेश वडे जघन्य बे अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटी वर्ष एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (४). . असंशी पं० तिर्यंचनी १८. जो ते (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच) जघन्य काळनी स्थितिवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोमा उत्पन्न थाय तो तेने जघ० संशी पं० तिय. पण एज वक्तव्यता कहेवी. पण विशेष ए के काळादेशथी जघन्य बे अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट आठ अन्तर्मुहूर्त-एटलो काळ यावत्चमी उत्पत्ति. गतिआगति करे (५). असंशी पं० तिवचनी १९. जो तेज उत्कृष्ट काळनी स्थितिवाळा संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिकोमा उत्पन्न थाय तो जघन्य अने उत्कृष्ट पूर्वकोटी वर्षनी स्थितिवाळा संज्ञी पं० तिर्यंचमां उत्पन्न थाय. अहीं एज पूर्वोक्त वक्तव्यता कहेवी. पण विशेष ए के अहीं काळादेश भिन्न जाणवो (६). पमा उत्पत्ति. उ० असंशी पं० तिर्य- २०. जो ते ज जीव पोते उत्कृष्टकाळनी स्थितिवाळो होय तो तेने प्रशम गमकनी वक्तव्यता कहेवी. पण विशेष ए के स्थिति चनी सं० ५० तिय- जघन्य अने उत्कृष्ट पूर्वकोटीनी होय छे. बाकी बधु पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवं. काळादेशथी जघन्य अन्तर्मुहुर्त अधिक पूर्वकोटी अने चमा उत्पत्ति. उत्कृष्ट पूर्वकोटीपृथक्त्व अधिक पल्योपमनो असंख्यातमो भाग-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (७). उ० असंशी पं० तिय- २१. जो ते जीव जघन्यकाळनी स्थितिवाळा तिर्यंचमां उत्पन्न थाय तो तेने पण एज (सातमा गमकनी) वक्तव्यता कहेवी. चनी जघ० संशी पं० तियचमा उत्पति. पण * पण विशेष ए के काळादेशथी जघन्य अन्तर्मुहर्त अधिक पूर्वकोटी अने उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहर्त अधिक चार पूर्वकोटी-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे (८). चमा उत्पत्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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