Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १४२. से णं ततो जाव उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव विराहियसामण्णे जोतिसिएसु देवेसु उववजिहिति।
[१४२] वह वहाँ से यावत् निकल कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, यावत् श्रामण्य की विराधना करके ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होगा।
१४३. से णं ततो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, केवलं बोहि बुझिहिति जाव अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति।
[१४३] वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, फिर केवलबोधि (सम्यक्त्व) प्राप्त करेगा। यावत् चारित्र (श्रामण्य) की विराधना किये बिना (आराधक होकर) काल के अवसर में काल करके सौधर्म कल्प में देव के रूप में उत्पन्न होगा।
१४४. से णं ततोहितो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, केवलं बोहि बुज्झिहिति। तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति।।
[१४४] उसके पश्चात् वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि भी प्राप्त करेगा। वहाँ भी वह चरित्र की विराधना किये बिना काल के समय में काल करके ईशान देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा।
१४५. ते णं तओहिंतो अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, केवलं बोहिं बुझिहिति। तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति।
[१४५] वह वहाँ से च्यव कर मनुष्य-शरीर प्राप्त करेगा, केवलबोधि प्राप्त करेगा। वहाँ भी वह चारित्र की विराधना किये बिना काल के अवसर में काल करके सनत्कुमार कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा।
१४६. से णं ततोहितो एवं जहा सणंकुमारे तहा बंभलोए महासुक्के आणए आरणे०।
· [१४६] वहाँ से च्यव कर, जिस प्रकार सनत्कुमार के देवलोक में उत्पन्न होने का कहा, उसी प्रकार ब्रह्मलोक, महाशुक्र, आनत और आरण देवलोकों में उत्पत्ति के विषय में कहना चाहिए।
१४७. से णं ततो जाव अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववजिहिति। .
[१४७] वहाँ से च्यव कर वह मनुष्य होगा, यावत् चारित्र की विराधना किये बिना काल के अवसर में काल करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव के रूप में उत्पन्न होगा।
__ विवेचन—प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. १३५ से १४७ तक) में सुमंगल अनगार द्वारा रथ-सारथि-अश्वसहित, गोशालक के जीव विमलवाहन को भस्म किये जाने से लेकर भविष्य में सात नरक, खेचर, भुजपरिसर्प, उर: परिसर्प, स्थलचर चतुष्पद, जलचर, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय तथा वनस्पतिकाय, वायुकाय, तेजस्काय, अप्काय एवं पृथ्वीकायिक जीवों में अनेक लाख बार उत्पन्न होने की, तत्पश्चात् स्त्री, भार्या, (ब्राह्मणपुत्री),