Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Pragnapti Sutra Part 02 Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| जाव किच्चा जाई इमाई पुढविकाइयविहाणाई भवंति, नं० - पुढवीणं सक्कराणं जाव सूरकंताणं, तेसु अणेगस्य जाव पच्चायाहिति, उस्सन्नं च णं खरबायर पुढविक्काइएस सव्वत्थवि णं सत्यवज्झे जाव किच्चा रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववज्जिहिइ, तत्थवि णं सत्यवज्झे जाव किच्चा दुच्छंपि रायगिहे नगरे अंतो खरियत्ताए उववज्जिहिति, तत्थवि णं सत्यवज्झे जाव किच्चा । ५६० । इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति, तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुकबालभावं जोव्वणगमणुष्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं पडिरूवएणं विणएणं पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति, सा णं तस्स भारिया भविस्सति इट्ठा कंता जाव अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडओविव सुसारक्खिया सुसंगोविया मा णं सीयं मा णं उन्हं जाव परिसहोवसग्गा फुसंतु, तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलधरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा दाहिणील्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति से णं ततोहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइहिति, तत्थडविय णं विराहियसामने कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं तं चैव जाव तत्थवि णं विराहियसामने कालमासे जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिति, से णं तओहिंतो अनंतरं०, एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवन्नकुमारेसु,
॥ श्रीभगवती सूत्रं ॥
२४७
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only
Loading... Page Navigation 1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283