Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. या प्रसार संसार समुड्ने विषे संतत पर्यटन करनारा प्राणीउने जन्म मरणादिक प्रत्यु दुःखोमांथी मुक्त करे एवो तो मात्र एक धर्मज बे घने एमज सर्व दर्शनीना शास्त्रमां पण कहेलुं बे, एवो जे धर्म तेनुं मूल तो सर्वाश युक्त दयाज बे. कहेलुं बे के " हिंसा परमो धर्मः " दयावडे धर्मनी प्राप्ति थाय बे; खने परिपूर्ण धर्म प्राप्त थया पी जीव मोक्षगामी थाय बे; माटें दया सर्वोत्कृष्ट पदार्थ बे. सर्व दर्शनीच दयानो उपयोग करेने खरा, परंतु सर्वाशें करता नथी. एटलाज माटें तेउने धर्म पदार्थनो जेवो जोइयें तेवो जान थतो नथी. दयानो सर्वाशें उपयोग तो मात्र जैन दर्शनमा स्वीकारयो बे तेथीज जैनदर्शन धर्मधुरिसर कहेवाय बे, माटें दयानो सर्वाशें उपयोग करवानी अगत्य बे, जेम कांई नोजनार्थ पक्वान्न करवुं होय तो तेमां घृत, पिष्ट, शर्करादिक अगत्य वस्तुनुं एकत्रपणुं यथाविधि याय त्यारेंज ते पक्कान्न स्वादिष्ट कवाय; पण जो उपर कहेली वस्तुमाथी एक पण वस्तुनुं उठा पशुं होय तो ते पकान्न स्वाद रहित बने. माठें दया पदार्थ सर्वशें पलाय तोज तेथी धर्मोपलब्धि थाय, ते विना तो कढ़ी पण थायज नहीं. सर्व दर्शनीउने दया मान्य बे खरी तथा पितेनी समजमां फेर होवाथी ते श्रेष्ठता पूर्वक दयानो उपयोग सर्वाशें करी शकता नयी. ए वात प्रगलना व्याख्यान उपरथी सिद्ध थशे. जेमके कोइएक दर्शनी तो एम जाने के पशुनो प्राणघात करवो, एटले ते जन्मथी बूटे, एम कही दया मानी लिये बे; कोइएक कहेबे के प्राणी, ज्यां सुधी शरीरें सुखी होय त्यां सुधी तेमनी न पर दया करवी, पण ज्यारें तेन व्याधिग्रस्त स्थितिमां पीडाता होय त्यारें तो ते प्रा udai वध करी तेमने यती पीडामांथी मुक्त करवा एज दयाबे: केटलाएक कहे बे के सूक्ष्म अथवा स्थूल प्राणी, जे मनुष्यने दुःख दीये बे, तेचने मारी नाखवा एज दया बे; केलाएक तो यज्ञयागादिक करवामां प्राणीउनो नाश करी तेमांज धर्म धुरं धरता मानी बेठा बे ने केटला एक प्रति सूक्ष्मादि प्राणी जेतुं स्वरूप दृष्टिगोच र नयी तेन चिंता देश मात्र न राखतां मात्र स्थूल प्राणीउ उपरज दया करवामां दया माने बे. एम घनेक प्रकारें दयानो उपयोग अन्य दर्शनीय करे बे तथापि ते स्वदया, परदया, इव्यदया, जावदया, निश्वयदया, व्यवहारदया, स्वरूपदया, अनुबं दया, इत्यादि दाना अनेक प्रकार, जैनग्रंथोमां सविस्तर वर्णन करेला बे ते प्रमा ऐं वर्त्ती दयानुं स्वरूप नयशैलीपूर्वक समजता नथी, एज तेउनी मतिमां विभ्रम बे Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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