Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 7
________________ सहित 16 अध्ययन हैं । रचना गद्य और पद्य में होते हुए भी गद्यःबहुल है । भापा-शास्त्र की रष्टि से प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीनतम है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध कुछ परवर्तीकाल का है। याचारांग सूत्र का प्रारम्भ ही प्रात्म-जिज्ञासा से होता है। इसमें प्रात्मइप्टि, अहिंसा, समता, वैराग्य, अप्रमाद, अनासक्ति, निस्पृहता, निस्संगता, सहिष्णुता, अचेलत्व, ध्यानसिद्धि, उत्कृष्ट संयम-साधना, तप की आराधना, मानसिक पवित्रता और प्रात्मशुद्धि-मूलक पवित्र जीवन का विस्तार से प्रतिपादन किया गया है। इसके साथ ही इसमें श्रमण भगवान महावीर के छमस्य काल को उच्चतम जीवन/संयम साधना के वे विलुप्त अंग भी प्राप्त होते हैं जो आगम-साहित्य में अन्यत्र कहीं भी प्राप्त नहीं हैं । इस ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों का अवलोकन करने पर यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि यदि साधनामय तपोपूत जीवन जीने की कला का शिक्षण प्राप्त करना हो तो साधक इस पागम ग्रन्थ-का अध्ययन अवश्यमेव करे । प्राचारांगसूत्र प्राकृत भाषा में होने के साथ-साथ दुरूह एवं विशाल भी है। इसका संस्कृत और हिन्दी प्रादि भाषात्मक व्याख्या साहित्य भी वृहदाकार होने से सामान्य पाठकों/जिज्ञासुओं के लिये इस अागम-ग्रन्थ का अध्ययन और रहस्य को समझ पाना अत्यन्त दुरुह नहीं होने पर भी कठिन तो अवश्य ही है। प्राकृत भापा के सामान्य अभ्यासी अथवा अनभिज्ञ पाठक भी प्राचारांग मूत्र की महत्ता, इसमें प्रतिपादित जीवन के शाश्वत मूल्यों एवं प्रात्मविकासोन्मुखी प्रमुस-प्रमुख विशेषतानों को हृदयंगम कर सकें, जीवन-साधना के पवित्र रहस्य तथा इसके प्रत्येक पहलुओं को समझ सकें, इसी भावना के वशीभूत होकर डॉ. कमलचन्दजी सोगाणी ने इस चयनिका का संकलन/ निर्माण किया है। प्रस्तुत चयनिका में प्राचारांगसूत्र के विशाल कलेवर में से वैशिष्ट्यपूर्ण केवल एक सौ उनतीस सूत्रों का चयन है और साथ ही प्रत्येक सूत्र का व्याकरणPage Navigation
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