Book Title: Aetihasik Striya
Author(s): Devendraprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 63
________________ ऐतिहासिक स्त्रियाँ समीप किसी बावड़ीके जलमें फिकवा दिया था और वह प्रतिमा बाईस घड़ी उस बावड़ीके जलमें पड़ी रही। जिनेन्द्र भगवानकी प्रतिमाका इतना अनादर करनेमें अंजनाने अशुभ कर्मका बंध किया तथा इस कर्मके उदयसे इस जन्ममें बाईस वर्षतक पतिका वियोग सहना पडा, माता-पिता द्वारा अनादर पाया, सास और ससुरके घरमें निवास करने तकको आश्रय नहीं मिला, सहायताकी याचना करनेपर भी परिवारके लोगोंने तथा अन्य सम्बन्धियोंने तनिक भी सहायता नहीं दी, नगरके लोगोंसे बुरी दृष्टिसे देखी गई और जिसने सुना उसीने निंदा की। जिनेन्द्र भगवानकी प्रतिमा मात्रका अनादर करनेसे अंजनाको इतने दुःख सहन करने पड़े तो फिर जो पापात्मा जिन शासनकी अवज्ञा करेंगे उन्हें नहीं मालूम नरकोंमें कैसे कैसे दुःख सहने पडेगे? यही क्यों, ऐसी बातोंके शास्त्रोमें अनेक उदाहरण भरे हैं, पर उन सबके प्रदर्शन करानेकी आवश्यकता नहीं। सबके लिए यही उदाहरण काफी होगा कि जिन शासनकी सच्ची प्रभावना करनेवाले एक ध्यानस्थ दिगम्बर मुनिके गलेमें राजा श्रेणिकने अज्ञानतावश मरा हुआ सर्प डाल दिया था इसी कारणसे राजा श्रेणिकने सातवें नर्कका बन्ध किया था। हमारे पाठकगण इस चरित्रसे केवल यही शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते कि अभिमानका फल क्या हो सकता हैं एवं जिन शासनकी अवज्ञाका फल क्या होता है, किन्तु हम इस चरित्रसे, नहीं नहीं चरित्रके एक एक अक्षरसे अच्छीसे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। हमें यह चरित्र बतलाता है कि मानव जन्मकी उपयोगिता और कर्तव्य क्या है। यह चरित्र मनुष्यके आलम्यको छुड़ाकर कर्मवीर बन सकता है। इस

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