Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3 ) 'ससरो मारो बालो भोलो, सासु बाल कुंवारी।' जब संसारी जीव अव्यवहार राशि में से निकल कर व्यवहार राशि में आते हैं, तब वे कर्म परिणाम राजा और काल परिणति महारानी के पुत्र माने जाते हैं। उन पुत्रों को 'भवितव्यता' नामक स्त्री प्राप्त होती है । संसारी जीवों पर इस भवितव्यता का बहुत जोर चलता हैं । यह स्वाधीनता पति का भवितव्यता पतिदेव को अनेक भव संबंधी गोली खिला-खिला कर भिन्न-भिन्न भवों में(जन्मों में)भ्रमण कराती है। प्रत्येक भव की आयु पूरी होने पर वह नये भव के लिये गोली खिलाती है। उस गोली का रस पतिदेव के गले उतारना पड़ता है और उस रस के अनुसार उस जन्म में पतिदेव का नाम और रुप होता है। भवितव्यता का चेतनदेव के साथ देह संबंध थोड़ा भी नहीं होता। भवितव्यता तो प्राणी को मात्र एक भव में भोगने योग्य कर्म समूह को देती है । इस प्रकार पतिदेव को चारों गतियों में झलाती है। उस गोली के असर से पतिदेव चारों गतियों में भटकते रहते हैं। अतः हे अवधूत ! विचार करो कि उपरोक्त पद्य में वास्तव में पुरुष कौन है ? स्त्री कौन है ? किसकी सत्ता है ? स्वाधीन कौन है ? स्वामी कौन है ? और पराधीन-दासी कौन है ? For Private And Personal Use Only

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