Book Title: Adhyatma Navneet
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 73
________________ १३८ अध्यात्मनवनीत देखकर संतुष्ट हो उठ नमन वन्दन जो करे। वह भव्य उनसे सदा ही सद्धर्म की प्राप्ति करे ।।८।। उस धर्म से तिर्यंच नर नरसुरगति को प्राप्त कर। ऐश्वर्य-वैभववान अर पूरण मनोरथवान हों।।९।। ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार द्रव्यसामान्यप्रज्ञापनाधिकार सम्यक् सहित चारित्रयुत मुनिराज में मन जोड़कर। नमकर कहूँ संक्षेप में सम्यक्त्व का अधिकार यह ।।१०।। गुणात्मक हैं द्रव्य एवं अर्थ हैं सब द्रव्यमय । गुण-द्रव्य से पर्यायें पर्ययमूढ़ ही हैं परसमय ।।१३।। पर्याय में ही लीन जिय परसमय आत्मस्वभाव में। थित जीव ही हैं स्वसमय - यह कहा जिनवरदेव ने ।।१४।। निजभाव को छोड़े बिना उत्पादव्ययधुवयुक्त गुणपर्ययसहित जो वस्तु है वह द्रव्य है जिनवर कहें।।१५।। गुण-चित्रमयपर्याय से उत्पादव्ययध्रुवभाव से। जो द्रव्य का अस्तित्व है वह एकमात्र स्वभाव है ।।९६।। रे सर्वगत सत् एक लक्षण विविध द्रव्यों का कहा। जिनधर्म का उपदेश देते हए जिनवरदेव ने ।।९७।। स्वभाव से ही सिद्ध सत् जिन कहा आगमसिद्ध है। यह नहीं माने जीव जो वे परसमय पहिचानिये ।।१८।। स्वभाव में थित द्रव्य सत् सत् द्रव्य का परिणाम जो। उत्पादव्ययध्रुवसहित है वह ही पदार्थस्वभाव है।।९९।। भंगबिन उत्पाद ना उत्पाद बिन ना भंग हो। उत्पादव्यय हो नहीं सकते एक ध्रौव्यपदार्थ बिन ।।१००।। पर्याय में उत्पादव्ययध्रुव द्रव्य में पर्यायें हैं। बस इसलिए तो कहा है कि वे सभी इक द्रव्य हैं ।।१०१।। • आचार्य जयसेन की टीका में प्राप्त गाथा८-९ और १० प्रवचनसार पद्यानुवाद उत्पादव्ययथिति द्रव्य में समवेत हों प्रत्येक पल । बस इसलिए तो कहा है इन तीनमय हैं द्रव्य सब ।।१०२।। उत्पन्न होती अन्य एवं नष्ट होती अन्य ही। पर्याय किन्तु द्रव्य ना उत्पन्न हो ना नष्ट हो ।।१०३।। गुण से गुणान्तर परिणमें द्रव्य स्वयं सत्ता अपेक्षा। इसलिए गुणपर्याय ही हैं द्रव्य जिनवर ने कहा ।।१०४।। यदि द्रव्य न हो स्वयं सत् तो असत् होगा नियम से। किम होय सत्ता से पृथक् जब द्रव्य सत्ता है स्वयं ।।१०५।। जिनवीर के उपदेश में पृथक्त्व भिन्नप्रदेशता । अतद्भाव ही अन्यत्व है तो अतत् कैसे एक हों।।१०६।। सत् द्रव्य सत् गुण और सत् पर्याय सत् विस्तार है। तदरूपता का अभाव ही तद्-अभाव अर अतद्भाव है।।१०७।। द्रव्य वह गुण नहीं अर गुण द्रव्य ना अतद्भाव यह । सर्वथा जो अभाव है वह नहीं अतद्भाव है।।१०८।। परिणाम द्रव्य स्वभाव जो वह अपृथक् सत्ता से सदा। स्वभाव में थित द्रव्य सत् जिनदेव का उपदेश यह ।।१०९।। पर्याय या गुण द्रव्य के बिन कभी भी होते नहीं। द्रव्य ही है भाव इससे द्रव्य सत्ता है स्वयं ।।११०।। पूर्वोक्त द्रव्यस्वभाव में उत्पाद सत् नयद्रव्य से। पर्यायनय से असत् का उत्पाद होता है सदा ।।१११।। परिणमित जिय नर देव हो या अन्य हो पर कभी भी। द्रव्यत्व को छोड़े नहीं तो अन्य होवे किसतरह ।।११२।। मनुज देव नहीं है अथवा देव मनुजादिक नहीं। ऐसी अवस्था में कहो कि अनन्य होवे किसतरह ।।११३।। द्रव्य से है अनन्य जिय पर्याय से अन-अन्य है। पर्याय तन्मय द्रव्य से तत्समय अतः अनन्य है ।।११४।।

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