Book Title: Acharya Shree Tulsi
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 3
________________ भूमिका आचार्य श्री तुलसी जैन श्वेताम्बर तेरापन्थकी गुरु-परम्परा मे नवम पट्टधर आचार्य हैं । पहली भेंट में व्यक्तिसे नहीं पा सका, गुरुके ही दर्शन हुए। समय कम था और वह भेंट कुछ तेरापंथी भाइयों के आग्रहकी पूर्ति के निमित्त से हुई थी । मैं बाहरी आदमी था और जिस पूजा और महिमाका वलय मैने उनके चारों ओर पाया, वह मुझे अनुपेक्षित हुआ । इससे लौटा तो कुछ विशेष भाव मेरे साथ नहीं गया बल्कि कुछ अन्तर रह गया और अरुचि सी हुई । मेरा मानना है कि आचार्य श्री तुलसीके व्यक्तित्वको पाने में यह साम्प्रदायिक वातावरण अन्तराय बना रहता है। इससे जो उन्हें प्राप्य है मिल नहीं पाता और हमे देय है, हम दे नहीं पाते । उसके बाद अणुव्रती संघकी स्थापनाका समाचार अखबारों मे पढा । संघके प्रतोंने और नियमोंने ध्यान खींचा। संघका पहला अधिवेशन दिल्ली में हुआ उस समय तेरापंथी भाइयोंने याद किया और चाहा कि मैं उसमें सम्मिलित होऊं । मैंने अपनेमे पर्याप्त रुचिका अभाव पाया और क्षमा चाही । उत्सवसे पहले संघकी एक अन्तरंग बैठक थी, उसमें जाना मैंने स्वीकार किया । उस सभाका मुझपर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा । घंटा भर मुक साक्षी बना बैठा रहा और सभाके विसर्जनपर तुलसीजी से, M मैं

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