Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 451
________________ भरत चरित ४३९ ६. ऋषभदेव के धर्मशासन को भरतजी ने स्थान-स्थान पर उद्दीप्त किया। गांवगांव में अनेक हलुकर्मी जीवों को तार कर उनका उद्धार किया। ७. उन्होंने उदितोदित रूप से सघन उद्योत किया। ऋषभदेवजी के कुल में दिनप्रतिदिन अधिकाधिक ज्योति जगाई । ८. लौकिक दृष्टि से तो भरतजी ऋषभ जिनेंद्र के सपूत थे ही, पर धर्म की दृष्टि से भी सपूत है। उन्होंने शासन की अद्भुत प्रभावना की । ९. सुख- समाधिपूर्वक विहार करते हुए लोकोपकार करते हुए आयुष्य निकट आया जानकर संथारे की तैयारी करने लगे। १०,११. अष्टापद पर्वत पर चढ़कर मेघघन नामक श्रीकार, मनोरम पृथ्वी शिला का प्रतिलेखन कर उस पर बैठकर चारों आहार का प्रत्याख्यान कर पादोपगमन संथारा कर दिया। १२. केवलज्ञानी भरतजी मरने की वांछा से रहित थे । अब मैं उनके वर्षों की गणना कर रहा हूं। सब चित्त लगाकर ध्यानपूर्वक सुनें । १३. सित्ततर लाख पूर्व तक गृहस्थ जीवन में कुमारपद के रूप में रहे । एक हजार वर्ष तक मंडलीक राजा के रूप में रहे । १४. छह लाख पूर्व में एक हजार वर्ष कम छह खंड में आज्ञा प्रवर्ता कर चक्रवर्ती पद का उपभोग किया। १५. एक लाख पूर्व श्रमण- - पर्याय का पालन किया उससे किंचित् कम केवल पर्याय का पालन किया। १६. भरतजी का परिपूर्ण आयुष्य चौरासी लाख पूर्व का हुआ। अंतिम ए महीने में संथारा ग्रहण कर उन्होंने अन्न-पानी का त्याग कर दिया ।

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