Book Title: Acharanga Sutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 817
________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. ६ . ४ शस्त्रमेदनिरूपणम् ૬૬ द्विविधम्, तत्र द्रव्यशखं स्वकाय परकायो - भयकायभेदात् त्रिविधम् । तत्रस्वकायशस्त्रसकायस्य सकायः, यथा - मृगादीनां व्याधकुक्कुरादयः, मनुष्यादीनां मनुष्यादयः । परकायशस्त्रम् - पापाणजलाग्निलगुडखङ्गतोमरछुरिकादयः । उभयकायशस्त्रम्-लगुडखङ्गादिधारिणो मनुष्यादयः । भावशस्त्रं तु कार्यं प्रति मनोवाक्कायानां दुष्प्रणिधानम् । सकापसमारम्भेण सः त्रसनशीलः कायः शरीरं यस्य स त्रसकायस्तस्य समारम्भः = पीडाकरः साधव्यापारस्तेन, इसकायं विहिंसन्ति । 3 - anaraftarai प्रवृत्ताः खलु पजीवनिकायरूपं लोकं सर्वमेव विहिंसन्तीत्याह--' सकाशम्' इत्यादि । कायशस्त्र = त्रसजीवोपमर्दकं शस्त्रं पूर्वोक्तप्रकारं समारम्भमाणाः सकार्य प्रति प्रयुञ्जानाः अन्यान् सकायभिन्नान् मेद हैं- स्वकाय, परकाय, और उभयकाय । त्रसका का काय स्वकायशत्र हैं, जैसे मृग आदि के लिए व्याध, कुत्ता आदि, मनुष्य के लिए मनुष्य आदि । परकायास्त्र जैसे पत्थर, जल, अग्नि, लकड़ी, तलवार, तोमर, शेरी आदि । उभयकायशत्र जैसे लाठी, तलवार आदि कारण करने वाला मनुष्य आदि । सकाय के प्रति मन, वचन, और कायका अप्रशस्त व्यापार होना arara है। इन नाना प्रकार के शस्त्रों से सकाय का समारंभ करके लोग काय को पीडा पहुँचाते है । काय को हिंसा में प्रवृत्ति करने वाले छह प्रकार के जीवनिकायरूप सम्पूर्ण लोक की हिंसा करते हैं, यह बात कहते हैं - सकाय में, काय की हिंसा करने वाले शस्त्रों का जो प्रयोग करते हैं वे सकाय के अतिरिक्त अनेक प्रकार के पृथ्वीकाय आदि * પરકાય અને ઉભયફાય, ત્રસકાયનું ત્રસકાય તે સ્વકાયશસ્ત્ર છે, જેમ મૃગ આદિને માટે વાધ-કુતરા આદિ, મનુષ્યને માટે મનુષ્ય આદિ. પરકાયશસ્ત્ર, જેમકે પથ્થર, रस, अग्नि, साउडी, तरवार, लाडु, छरी आदि, लयायशत्र, प्रेम-साडी, તલવાર આદિ ધારશું કરવાવાળા મનુષ્ય આદિ. ત્રસકાયના પ્રતિ મન, વચન અને કાયાના અપ્રશસ્ત વ્યાપાર થા તે ભાવશસ્ત્ર છે. તે નાના પ્રકારનાં શસ્ત્રોથી ત્રસકાયને સમારભ કરીને લેફ ત્રસકાયને પીડા પહોંચાડે છે. ત્રસકાયની હિંસામાં પ્રવૃત્તિ કરવાવાળા છ પ્રકારના ગનિકાયરૂપ સમ્પૂર્ણ લાકની હિંસા કરે છે. એ વાત કહે છેન્ત્રસકાયમાં, ત્રસકાયની હિંસા કરવાવાળા શસ્રાને જે પ્રયેાગ કરે છે, તે ત્રસકાયથી જૂદા અનેક પ્રકારના પૃથ્વીકાય આદિ પાંચ સ્થાવર

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