Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
RECE
ह१ चेएमि आवसहं वा समुस्सिणोमि से भुंजह वसह, आउसंतो समणा ! भिक्खू तं आचा० गाहावई समणसं सवयसं पडियाइक्खे-आउसंतो? गाहावई नो खलु ते वयणं आढामि
सूत्रम नो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुमं मम अट्टाए असणं वा ४ वत्थं ४ पाणाई वा ४ ॥७४६॥
॥७४६॥ सणारम्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छिज अणिसह अभिहडं आहट्ट चेएसि आवसहं वा
समुस्सिणासि, से विरओ आउसो गाहावई ? एयस्स अकरणयाए (सू० २०२) __सामायिक उच्चरेलो ते साधु सावध अनुष्ठान छोडवाथी मंदर [ मेरु ] पर्वते चडवा समान प्रतिज्ञा करेलो भिक्षाथी जीवन 8 गुजारनार साधु-भिक्षा लेवा के बाजा कार्य माटे पराक्रम (विहार) करे, अथवा ध्यानमा लीन थइने उभो रहे, अथवा भणबुं भणाव, अथवा सांभळq के संभळावq होय त्यारे बेसे, तथा कोइ जग्याए मार्गमां थाकतां आडो पडे (मुइ रहे) प्र०-आ बधुं
कइ जग्याए करे ? ते बतावे छे-मशाण एटले ज्यां मुडदां दाटे बाळे ते स्थान, (जेनुं बीजुं नाम पितृवन) छे तेमा सुवार्नु संभवे व नहि, माटे यथायोग्य ज्यां घटे, ते लेचु, ते विचारतां गच्छ वासीओने ते मशाण विगेरे स्थान कल्पतां नथी, कारण के तेवा स्थाHनमा रही प्रमाद थतां व्यंतर विगेरेनो उपद्रव थाय छे, तथा जिनकल्पी मुनि थवानी सत्व भावनाने भावगार स्थविर कल्पी मुनिने
पण मशाणमां निवास करवानी संमति आपी नथी, पण प्रतिमाधारी मुनिने तो ज्यां सूर्य आथमे त्यांज रहेवानुं छे, तेवाने आश्रयी 1 अथवा जिनकल्पी मुनिने आश्रयी मसाणवें स्थान मूत्र प्रमाणे समजवं, ए प्रमाणे ज्यां जेनो संभव थाय. त्यां ते योजq. शून्यागार
स्ववादावन
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186