Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ --------- सर्वत्रगाख्य: किष्टानां स्वभूमौ पूर्वसर्वगाहा:-.-.-.-------- विपाक हेतुरशुभा: कुशालाम्चैव साश्रवाः // 54 // सर्वत्रगः सभागश्च द्वाध्वगौ त्र्यध्वगास्त्रयः। संस्कृतं सविसंयोगं फलं नासंस्कृतस्य ते // 55 // . . LrPani विपाक फलमन्त्यस्य पूर्वस्याधिपतं फलम्। सभागसर्वत्रगयो नियन्दः पौरुषं दयोः // 56 // विपाकोऽव्याकृतो धर्मः सत्वाख्यो व्याकृतोद्वः। निष्यन्दो हेतुसशो विसंयोगः अयो धिया // 57 / / यदलाज्जायते यत् तत् फलं पुरुषकारजम् | अपूर्व संस्कृतस्यैव संस्कृतोऽधिपतेः फलम् / / 8 / / वर्तमाना: फलं पञ्च गृह्णन्ति द्वौ प्रयच्छतः। वर्तमानान्यतीतो द्वावेकोऽतीत: प्रयच्छति / 59 // तिष्टा विपाकजा: शेषा प्रपमार्या यथाक्रमम्। विपाकं सर्वगं हित्वा तौ सभागं च शेषजा॥॥ चित्तचैत्तास्तधान्येऽपि सम्प्रयुक्तकवर्जिता। चत्वारः प्रत्यया उक्ता हेत्वाख्या: पञ्च हेतवः // 66 // चित्तवेत्ता अचरमा उत्पन्नाः समनन्तरः। आलम्बनं सर्वधर्माः कारणाख्योऽधिप: रमत:॥६॥

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