Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 268
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र- बड़ी संलेखना का पाठ पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं पच्चक्खामि, सव्वं मेहुणं पच्चक्खामि सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि सव्वं कोहं माणं जाव मिच्छादंसणसल्लं, सव्वं अकरणिज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, मणसा वयसा कायसा ऐसे अठारह पापस्थान पच्चक्ख के सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए ऐसे चारों आहार पच्चक्ख के, जंपि य इमं सरीरं इट्टं, कंतं, पियं, मणुण्णं, मणामं, धिज्जं, विसासियं, संमयं, अणुमयं, बहुमयं, भण्डकरण्डगसमाणं, रयणकरंडगभूयं, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं वाला, मा णं चोरा, मा णं दंसमसगा, माणं वाइय-पित्तिय-कप्फिय (सिंभिय) सण्णिवाइय, विविहा रोगायंका परिसहा उवसग्गा फासा फुसंतु एवं पि य णं चरमेहिं उस्सासणिस्सा सेहिं वोसिरामि-त्ति कट्टु, ऐसे शरीर को वोसिरा के, कालं अणवकंखमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, फरसना करूं तब शुद्ध होऊँ ऐसे अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणाए पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोउं - इहलोगासंसप्पओगे, पर लोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामभोगा संसप्पओगे, मा मज्झ हुज्ज मरणंते वि सड्ढा परूवणम्मि अण्णहा भावो, जो में देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं । कठिन शब्दार्थ - अह अंतिम अथ, अपच्छिम जिसके पश्चात् और कोई क्रिया करना शेष नहीं रहता, मारणंतिय मृत्यु के समय की जाने वाली, संलेहणा संलेखना-देह और कषायों को क्षीण करने की क्रिया, झूसणा सेवन करना, आराहणा अंतकाल तक आराधन करना, उच्चारपासवण भूमिका मल-मूत्र त्यागने की भूमि, पडिलेहदेख करके, दर्भादिक दर्भ (घास) आदि का, दुरूह कर आरूढ़ होकर, करयलसंपरिग्गहियं- दोनों हाथ जोड़ कर, सिरसावत्तं मस्तक से आवर्तन करके, मत्थएमस्तक पर, अंजलिं कट्टु - हाथ जोड़ कर, निःशल्य - शल्य रहित, करंतं पि अन्नं न *********** Jain Education International - For Personal & Private Use Only - २४७ ************* - - www.jainelibrary.org

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